| न भूले तुम , न भूले हम |
| मोहब्बत किसी की न थी कम |
| दुनिया के झूठे रीति - रिवाजो ने |
| धर्म से निकले अल्फाजों ने |
| इस जहाँ से हमें मिटा दिया |
| उसे दफनाया, मुझे जला दिया |
| जिंदगी की बेवफाई समझ में आई |
| दी जाती जहाँ धर्मो की दुहाई |
| अजीब है दुनिया का कायदा |
| खुदा भी बांटा आधा आधा |
| लेकिन हम मर कर भी जिन्दा है |
| खुले आस्मां के आज़ाद परिंदा है |
| जहाँ एक धरती एक है आसमान |
| नहीं जहाँ धर्मो के हैं निशान |
| मस्जिद भी मेरी मंदिर भी मेरा |
| अब हर घर पर है अपना बसेरा |
| खुश हैं इस दुनिया अंजान में |
| नहीं उलझता कोई गीता -कुरान में |
| सुर नहीं था जीवन के तरानों में |
| अपनापन मिला जाकर बेगानो में |
| बादलों के बीच लगता फेरा अपना |
| हर सांझ अपनी हर सवेरा अपना |
| अब न कोई गम, न कोई सितम |
| नयी दुनिया का एक ही नियम |
| न भूले तुम , न भूले हम |
| मोहब्बत किसी की न थी कम |
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6 अप्रैल 2016
नयी दुनिया
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सुंदर भावप्रवाह..
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंआपने लिखा...
जवाब देंहटाएंकुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 07/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 265 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमोहब्बत कभी नहीं मरती ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन और सुचित्रा सेन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंकविता के तेवर अच्छे लगे
जवाब देंहटाएंसुंदर लिखा..
जवाब देंहटाएंThanks All
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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