ब्लौग सेतु....

3 नवंबर 2016

"बीती बातें"

कुछ कहनाकुछ सुनना;
अब बीतें दिनों की बातें हैं 
अनजानी सीअनदेखी सी;
डोर का धागाअब टूट सा गया है ।।
तेरे सपनेतेरे अपने;
दुनियादारी और समझबूझ की बातें 
तुम को 'तुम सा'
बनने से दूर करती हैं ।।
तेरे मेरे बीच का अपनापन,
जैसे एक नदी के दो पाट;
रहें साथचलें साथ 
लेकिन पाटों का अलगाव,
कुछ सोचने को मजबूर करता है ।।
तेरी समझदारी की लहरों के बीच,
मेरी नादानियों का निर्झर सूख सा गया है 
दुनियादारी की भीड़ के बीच,
अपनेपन का एक भीगा सा कोना
कहीं छूट सा गया है ।।


XXXXX

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