कोरे कागज दिल पर , प्रेम लकीर खींच | |||
मैली गठरी हुई तेरी , देख नयन मीच | |||
तन मैल धोयी के , उज्जवल दियो बनाए | |||
मन दर्पण होये कैसे , कुछ तो करो उपाय | |||
वक़्त पहिया चले सदा , देखे ऊंच न नीच | |||
पर निंदा से मन मैला, हुई कीच ही कीच | |||
मैले मन के मंदिर में , प्रभु को दियो बिठाय | |||
बेआवाज जब लाठी पड़े , आगे कौन सहाय | |||
अग्नि तेरी दौलत की , बुझा न सके कोई और | |||
एक झटका काल का , छिनता अंतिम कौर | |||
समझ सको तो समझ लो , हितवाणी के बोल | |||
स्वर्ण सज़ा तन तेरा, बिकता फिर बेमोल | |||
हितेश कुमार शर्मा | |||
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8 दिसंबर 2016
हितवाणी -4
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बहुत सुन्दर
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