सीरत कुछ की काली
देखी
राजेश त्रिपाठी
हमने इस जग की हरदम रीत निराली देखी।
सूरत देखी साफ, मगर सीरत* कुछ की काली देखी।।
कुछ खाये-अघाये इतने खा-खा
कर जो बने हैं रोगी।
शील, सौम्यता खो गयी बने आज ज्यादातर भोगी।।
परमार्थ का भाव खो गया सभी
बन गये सुविधावादी।
पानी पीकर देश को कोसें चाहें गाली देने की आजादी।।
ऐसे लोगों में गुरूर भरा
कंठ तक, तर्क की कोठी खाली देखी।
अपनी बात मनाने को लड़ते, आदत अजब निराली देखी।।
कितना लूटें, कितना समेंटे बस इनका यही है धंधा।
ये अपनों तक को ना छोड़ें मानस इनका होता गंदा।।
मक्कर से ये दुनिया चलाते इनकी ऐसी होती चालें।
लाख जतन कर बच ना पाये जिस पर फंदा डालें।।
पैसे के हित कुछ भी करते हरकत
चौंकानेवाली देखी।
सूरत देखी साफ, मगर सीरत
कुछ की काली देखी।।
खून-पसीना एक कर जो बनाते हैं भवन निराले।
अक्सर खाली पेट ही देखा मिलने नहीं निवाले।।
ठंडे घऱों में श्रीमंत राजते वैभव से भरा खजाना।
कभी-कभी श्रमिकों के घर होता एक न दाना ।।
उसकी जिंदगी की झोली देखी अक्सर रहती खाली।
सूरत देखी साफ, मगर सीरत
कुछ की काली देखी।।
धूप, शीत, बरसात झेल कर
खेती करे किसान।
मौसम, महाजन की मार से जो रहता हलकान।।
उसका श्रम कभी-कभी जाता
एकदम बेकार ।
जब उसे पड़ती है झेलनी सूखे-बाढ़ की मार।।
फसल के सही दाम कम मिलते
उसकी थैली रहती खाली।
सूरत देखी साफ,
मगर सीरत कुछ की काली देखी।।
सब होवैं खुशहाल यहां सबको मिले सही सम्मान।
सच कहें तो तभी बनेगा अपना पावन देश महान।।
कोई कमाये कोई खाये कोई
हरदम करता फांका।
इसका मतलब किसी के हक पर डाले कोई डाका।।
यह हालत ज्यादा अरसे तक अब
नहीं है चलनेवाली।
सूरत देखी साफ, मगर सीरत
कुछ की काली देखी।।
सीरत*= स्वभाव, चरित्र, प्रकृति
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर
धन्यवाद यशोदा जी मेरे भावों के समर्थन के लिए। आभार।- राजेश त्रिपाठी
हटाएंदिनांक 18/12/2016 को...
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद... https://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस प्रस्तुति में....
सादर आमंत्रित हैं...
धन्यवाद ठाकुर जी। आपने मेरे भावों को मान दिया, आपका बहुत-बहुत आभार।-राजेश त्रिपाठी
हटाएंधन्यवाद शास्त्री जी। स्नेह और आशीर्वाद बनाये रखने का आग्रह है। -राजेश त्रिपाठी
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत
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