जिनमें असीर है कई बातें जो नक़्श से उभरते हैं
खामोशियों की क्या ? कोई कहानी नहीं...
ये सुब्ह से शाम तलक आज़माए जाते हैं
क्यूँकि हर तकरीरें से तस्वीरें बदलती नहीं
न हि हर खामोशियों की तकसीम लफ़्जों में होती
रफ़ाकते हैंं इनसे पर चुनूंगी हर तख़य्युल को
जब खुशी से वस्ल होगी...
© पम्मी सिंह
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(आसीर-कैद ,तकरीर-भाषण,रफाकते-साथ,तख़य्युल-विचारो,तकसीम-बँटवारा )
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-12-2016) को "ये भी मुमकिन है वक़्त करवट बदले" (चर्चा अंक-2546) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी,धन्यवाद.
हटाएंजी,धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंशुक्रिया.
हटाएंदिनांक 08/12/2016 को...
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद... https://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस प्रस्तुति में....
सादर आमंत्रित हैं...
जी,धन्यवाद.
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