| अपने खून से करते जो वतन की | |||
| हिफाजत तो उस से हमें क्या | |||
| मिलती तुम्हे गोली ,पत्थरों से | |||
| क़यामत तो उस से हमें क्या | |||
| झेली होगी तुमने जो दुश्मन की | |||
| गोलियां अपने सीने पर | |||
| कहते होंगे कोई उसे भी | |||
| शहादत तो उस से हमें क्या | |||
| देशप्रेम का जज्बा अगर तुम्हारे | |||
| अंदर बे वजह भरा यूँ ही | |||
| आपका परिवार देता है इसकी | |||
| इज़्ज़ाजत तो उस से हमें क्या | |||
| अपना खुदा तो मंदिर मस्जिद | |||
| में कहीं छिपा बैठा है कोने में | |||
| वतन की हिफाजत को तुम कहते हो | |||
| इब्बादत तो उस से हमें क्या | |||
| अपनी नई नवेली दुल्हन के | |||
| हसींन अरमानो की जगह | |||
| तुम ने अगर वतन से है | |||
| मोहब्बत तो उसे से हमें क्या | |||
| तुम्हारी जान की कीमत कोई | |||
| चुका न सका इस ज़माने में | |||
| अगर इस बात से तुम्हे है | |||
| शिकायत तो उस से हमें क्या | |||
| वतन की मिटटी को अपने खून से | |||
| सींच कर तुम विदा हुए जो | |||
| होगी तुम्हारी अर्थी पर फूलों की | |||
| सजावट तो उस से हमें क्या | |||
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7 मई 2017
उस से हमें क्या ( व्यंग)
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आदरणीय, सुन्दर रचना ! ,"सत्यता के पट खोलती ,चंद शब्दों में बोलती देश की हालत" आभार। "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंThanks
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