वो हमको ऐसा बिसराये, सावन में
आंख में आंसू भर—भर आये, सावन में
बिजली चमके बादल गरजे, डर जाउं
रिमझिम मन में प्यास जगाये,सावन में
खिलते फूल महकती कलियां, न भायें
पुरवा बैरन आग लगाये ,सावन में
इतना हरजाई निकलेगा, सनम मेरा
इश्क किया करके पछताये, सावन में
पिछले खत पढ—पढ के ये दिल,रोता है
अब विरहन से सहा न जाये, सावन में
क्या लेना दुनियां से मुझको, बिन तेरे
दिलकश ये मौसम न भाये, सावन में
नहीं गिला, शिकवा हमको, बेगानों से
जख्मी ने ही जख्म लगाये,सावन में
-सुदेश यादव जख्मी
कवि, साहित्यकार
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, लाजवाब....
बहुत ख़ूबसूरत रचना ... भावपूर्ण
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