माँ, मैं शून्य था।
तुम्हारी कोख में आने से पहले
शून्य आकार था। एकदम शून्य
आपने जीवन दिया मुझे...
अंश बना तुम्हारा...
अनेक उपकार हैं तुम्हारे
मैं आहवान करता हूँ माँ तुम्हारा!
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लिखी रेत पे कविता
लिखा नाम तुम्हारा
लिखा क़लमा...
परवाज़ रूह हो गयी
जुगनू की रोशनी में...
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हाँथो से तस्वीर उतरी
उंगुलियों ने रंग पहना
दिल के कैनवास पर
ज़िन्दगी एक नई दौड़ी
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