प्यासी धरती आस लगाये देख रही अम्बर को |
दहक रही हूँ सूर्य ताप से शीतल कर दो मुझको ||
पात-पात सब सूख गये हैं, सूख गया है सब
जलकल
मेरी गोदी जो खेल रहे थे नदियाँ जलाशय, पेड़
पल्लव
पशु पक्षी सब भूखे प्यासे हो गये हैं जर्जर
भटक रहे दर-दर वो, दूँ मै दोष बताओ
किसको
प्यासी धरती आस लगाए देख रही अम्बर को |
इक की गलती भुगत रहे हैं, बाकी
सब बे-कल बे-हाल
इक-इक कर सब वृक्ष काट कर बना लिया महल अपना
छेद-छेद कर मेरा सीना बहा रहे हैं निर्मल जल
आहत हो कर इस पीड़ा से देख रही हूँ तुम को
प्यासी धरती आस लगाए देख रही अम्बर को |
सुन कर मेरी विनती अब तो, नेह
अपना छलकाओ तुम
गोद में मेरी बिलख रहे जो उनकी प्यास बुझाओ तुम
संतति कई होते इक माँ के पर माँ तो इक होती है
एक करे गलती तो क्या देती है सजा सबको ?
प्यासी धरती आस लगाए देख रही अम्बर को |
जो निरीह,आश्रित हैं जो,
रहते
हैं मुझ पर निर्भर
मेरा आँचल हरा भरा हो तब ही भरता उनका उदर
तुम तो हो प्रियतम मेरे, तकती रहती हूँ
हर पल
अब जिद्द छोड़ो इक की खातिर दण्ड न दो सबको
प्यासे धरती आस लगाए देख रही अम्बर को |
झड़ी लगा कर वर्षा की सिंचित कर दो मेरा दामन
प्रेम की बूंदों से छू कर हर्षित कर दो मेरा
तनमन
चहके पंक्षी, मचले नदियाँ,
ओढूं
फिर से धानी चुनर
बीत गए हैं बरस कई किये हुए आलिंगन तुमको
प्यासी धरती आस लगाए देख रही अम्बर को ||
रचनाकार:
मीना पाठक
meena.ashwani55@gmail.com
हकीकत बयाँ करती लाजवाब प्रस्तुति धारदार
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