पीड़ा का पर्याय जिंदगी, हर इक है हलकान।।
भेदभाव की दीवारों ने, बुना जहर का जाल।
भाईचारा नहीं रहा अब, द्वैष से सब बेहाल।।
नेता हों या शासक जिसके बेच रहे ईमान।
जिस देश में ऐसा हो, उसे कैसे कहें महान।।
जहां आज तलक आधी आबादी भूखी सोती है।
रावण है मदमस्त, जहां सीताएं पीड़ित रोती हैं।।
सच्चे झेलें कष्ट, जहां झूठे की इज्जत होती है।
किसी देश में क्या ऐसी भी आजादी होती है।।
युवा हाथ बेकार जहां, मरते जहां किसान।
जिस देश में ऐसा हो, उसे कैसे कहें महान।।
लफ्फाजी है, भाषणबाजी है, बड़े-बड़े आश्वासन।
गाली-गलौज है, मारपीट है, खो रहा अनुशासन।।
अब चुनाव ऐसे होते हैं, जैसे होता कोई समर।
जर्रे-जर्रे में जहर घुल गया, ऐसा हुआ असर।।
सच्चे की हो सांसत, पूजा जाता हो शैतान।
जिस देश में ऐसा हो, उसे कैसे कहें महान।।
वादों के बियाबान में जनता खोज रही सुविधाएं।
ये वादे वे स्वप्नमहल हैं, चुनाव हुए ढह जाएं।।
आंसू हैं, आर्तनाद हैं, दिशा-दिशा में दावानल।
शांति पुनः स्थापित हो, है कोई जो करे पहल।।
स्वार्थ-नीति में जहां हों डूबे सत्ता के 'भगवान'।
जिस देश में ऐसा हो, उसे कैसे कहें महान।।
देश पड़ोसी आंख तरेरें, हम रह जाते हैं खामोश।
इस बुजदिली से उनका, बढ़ता और भी जोश ।।
जो पिद्दी से देश वे भी इससे, बन बैठे हैं शेर।
जाने माकूल जवाब देने में, क्यों होती है देर।।
सीमाओं पर जहां हमेशा हमले के इम्कान।
जिस देश में ऐसा हो, उसे कैसे कहें महान।।
देश महान है, देश पूज्य है, देश है देव समान।
हम चाहेंगे भला ही इसका, हो सार्विक कल्याण।।
पर हालात रुलाते हमको, जितनी बढ़ती जाती पीर।
अनाचार से त्रस्त सभी हैं, चाहे कायर या हो धीर।।
संकट के बादल हों छाये, घिरे हुए तूफान।
जिस देश में ऐसा हो, उसे कैसे कहें महान।।
शासन में शुचिता आए, जनमुखी हों जिसके काम।
जल,थल,नभ रहें सुरक्षित, देश बने सुख का धाम।।
भेदभाव मिट जायें जग से,फिर हो सबमें भाईचारा।
डर का विनाश हो जाये, लहरे निडर तिरंगा प्यारा।।
देश का हर नागरिक सुखी हो, हो गरीब या धनवान।
मुक्त हो जीवन, मुक्त हो वाणी, तभी कहेंगे देश महान।।
-राजेश त्रिपाठी
प्रिय शास्त्री जी, सादर नमन और आभार। यों ही बनाये रखिए आर्शीवाद और प्यार। क्या कहें देश के हालात बद से बदतर हो गये। गांधी के सपने ना जाने किस जहां में खो गये। ऐसे हालत में रचना के गर शब्द तल्ख हो जायें। लेखनी वही सब लिखती है हम खुद को रोक न पायें। ईश करे अब भारत का हो जाये उद्धार। दशा देश की बदले आये ऐसी अब सरकार।
जवाब देंहटाएंउम्मीद की किरन बन कर आयेगा कोई जो होगा इंसान
जवाब देंहटाएंउम्मीद है जो था फ़िर से होगा अपना ये देश महान !!
आप ऐसे ही अपने भाव साझा करते रहें
प्रिय पंकज जी आभार। यों ही बनाये रखिएगा प्यार। काश आपकी और हमारी उम्मीद बर आये। देश की दशा दिशा संभले अब ऐसी सरकार आये। जाने कितने दंश इस देश ने झेले हैं। अब तो दूर हों जो जन-जन को पीड़ित करते झमेले हैं।
हटाएं-सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंआपने लिखा....
मैंने भी पढ़ा...
हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 08/05/ 2014 की
नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
हलचल में सभी का स्वागत है...
प्रिय कुलदीप जी आभार। आप ऐसे ही बनाये रखिएगा प्यार।
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