यह तुम भूल न जाना!
कितने आंसू पिए अभी तक, कितनी बार पड़ा था रोना।
कितने दिन तक फांका काटे, बिन खाये पड़ा था सोना।।
कितने अधिकार गये हैं छीने, कब-कब खायी थी मात।
राजनीति के छल-प्रपंच में, कितने ठगे गये हो तात।।
मत की
कीमत को पहचानो, मत देने अवश्य ही जाना।
दल के
दलदल में भाई, सही व्यक्ति को भूल न जाना।।
लंबी-चौड़ी हांक गये सब, जैसे दुख सब ये हर लेंगे।
जहां-जहां है बंजर धरती, सत्वर ये उपवन कर देंगे।।
बेकारों को काम मिलेगा, कामगार को पूरी मजदूरी।
दुखिया नहीं रहेगा कोई, ख्वाहिश सबकी होगी पूरी।।
ये धरती पर
स्वर्ग गढ़ेंगे, पल भर को हमने माना।
बीते
दिनों भी यही अलापा, यह तुम भूल न जाना।।
जाति-पांति का चक्कर छोड़ो, अब तो लो दिमाग से काम।
जाति नहीं है काम ही सच्चा, यह संदेश सुखद अभिराम।।
जांचो-परखो यह भी सोचो, क्या चाह रहा है अपना देश।
चहुंदिशि विकास हो ऐसा, मिट जाये जन-जन का क्लेश।।
लोक लुभावन उन नारों से मेरे भाई मत भरमाना।
अपना भाग्य हाथ में अपने, यह तुम भूल न जाना।।
जाने कितने चेहरे देखे, सबके अपने-अपने नारे।
सत्ता-सुख की खातिर, जो धूप में घूमे मारे-मारे।।
इनके इतिहास को देखो, देखो विकास का खाका।
इसको परखो तो जानोगे, इनमें से कौन है बांका।।
उसको मत, मत देना, जो ठग है जाना पहचाना।
सच्चे को चुनना
हितकर, यह तुम भूल न जाना।।
कितने दुर्दिन भोग रहा है, अपना प्यारा भारत देश।
सुख तो सपना है अब, बढ़ते जाते दिन-दिन क्लेश।।
महंगाई है, है बेकारी, दिशा-दिशा कोहराम मचा है।
क्या कहें किससे कहें,किसने जीवन-संग्राम
रचा है।।
देश-दुर्दशा से
उबरे, सब सुख-चैन का गायें गाना।
उसे ही चुनना जो
सब कर दे, यह तुम भूल न जाना।।
वीर-धीर हो दृढ़प्रतिज्ञ हो, निर्णय ले सकता हो आला।
देश के बाहर से ला दे जो, धन जमा है जो भी काला।।
दुश्मनों को दे जवाब जो, जो जन-जन की हर ले पीर।
सीमाओं को करे सुरक्षित, देश को पूजे जो सच्चा वीर।।
जिसमें हो साहस
व दृढ़ता, सबका जो जाना-पहचाना।
अब ऐसे ही शख्स
को चुनना, यह तुम भूल न जाना।।
वादों और इरादों में अंतर जो, उसको जानो भाई।
झूठ बहुत मैदान में फैला, सच को मानो भाई।।
जो सच के साथ खड़ा है, वही है सच्चा मीत ।
उसका गर दिया साथ तो, वह लेगा दिल जीत।।
सच को पहले
पहचानो, नहीं भुलावे में अब आना।
पांच साल होगा
पछताना, यह तुम भूल न जाना।।
-राजेश
त्रिपाठी
बहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंWhy visitors still make use of to read news papers when in this technological world all
जवाब देंहटाएंis presented on web?
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वोट किसी को दो चोर तो सभी हैं -----रचना अति सुंदर
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
हिंदी की पीड़ा
जवाब देंहटाएंभारत अपनी माता है
हिंदी इसकी बेटी /
अपनाकर अंग्रेजी
हिंदी बलि क्यूँ देदी
माँ थी कैद सदियों से
माँ की जंजीरे टूटी
बेटी का दुर्भाग्य देखो
जनता उससे रूठी /
आँख में भरकर आंसू
हिंदी बोली -
अपना लो -अपना लो मुझको ,
मैं हूँ वतन की बेटी /
तुमतो कहते थे ,
मिलेगी जब हमको आज़ादी ,
मेरे वतन की धरती से
अंग्रेजी जाए गी भागी भागी
मेरे वतन की ...........
लेकिन हाए ! लेकिन हाए!
मुझ पर क्या अत्याचार हुआ
घर की बेटी का जीवन ,
-घर में ही ही दशवर हुआ /
सहमी सी , सकुचाई सी ,
अंग्रेजी के दर से
- घबराई सी /
सिमट गई अपने ही आँचल में
वह भारत की तरूणाई सी /
कोलाहल में , बाजारों में
अंधियारी रातों के सन्नाटो में /
वह ऊरभेदी सा उनका रूदम ,
वह स्व को की उनकी हुंकार
गलियों और कूंचो से
भीड़ों के अनदेखे रूप से
गूँज उठी वह करूण पुकार
लोटा दो- लोटा दो तुम
मेरा वो खोया सा मान /
अपने तन को, अपने मन को ,
आज बचाने को
जाग उठे इस धरती का जन-जन
कर उठे , ये आगाज
जागो - जागो तुम्हे अब
-जाग जाना है ,
हिंदी का गौरव फिर से
-मेरे हिन्द में -
वापस लाना है /
सुन्दर बहुत ही खूब सूरत रचना
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंVery impressive .
जवाब देंहटाएंश्रीमान आपकी लेखनी अत्त्यन्त ही रोचक और शिक्षाप्रद है,ह्रदय से आभार व्यक़्त करता हूँ
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