राजेश त्रिपाठी
किस कदर गिर गया है अब इनसान देखिए।
रिश्तों की कद्र नहीं, पैसे की पहचान देखिए।।
सारे उसूल, अब सारी रवायत दफन हुई।
दर-दर है बिक रहा अब ईमान देखिए।।
पैसा ही आज सब है, ये माई-बाप है।
पैसा जैसे चलाये, चल रहा इनसान देखिए।।
कुछ लोग ऊंचे ओहदों पर बैठ यों ऐंठ रहे हैं।
खुद को वो समझते हैं, धरती का भगवान देखिए।।
बेटे को पढ़ा-लिखा काबिल बना दिया।
वृद्धाश्रम में पल रहे वे मां-बाप देखिए।।
वो दिन-रात तरक्की का ढोल पीट रहे हैं।
भूखा सो रहा आधा हिंदोस्तान देखिए।।
हम क्या कहें किस तरह मुल्क के हालात हो रहे।
हर तरफ हैं अब तूफानों के इमकान देखिए।।
हर गली, हर गांव, हर शहर में खौफ का साया।
कितने मुश्किलों में घिर गयी अब जान देखिए।।
'मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना' भूल गये हैं।
मजहब के नाम पर उठ रहे हैं कितने तूफान देखिए।।
इस कदर चलता रहा गर ये हंगामा मुसलसल।
फिर टुकड़ों में न बंट जाये हिंदोस्तान देखिए।।
वो जिनको प्यार है इस मुल्क, इनसानियत से।
वे चेत जायें वरना होंगे वे भी परेशान देखिए।।
आदम की जात पहले इतनी खूंखार नहीं थी।
क्या हो गया अब हर हाथ में हैं हथियार देखिए।।
वो दिन गये जब दिलों में मोहब्बत का ठौर था।
अब बस नफरत, नफरत, नफत का है राज देखिए।।
हो सके तो इनसानियत की हिफाजत करे कोई।
अब तो दुनिया में है स्वार्थ का व्यवहार देखिए।।
इस कदर शक और खौफ का आलम रवां-दवां।
उठ गया है सब पर से अब ऐतबार देखिए।।
कुछ इस कदर हैं हालात आज दुनिया के ।
डर है कभी हमसाया ही न कर दे वार देखिए।
सुंदर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंसुंदर विचार सुंदर गज़ल।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंदिनांक 15/09/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुरसुंदर प्रस्तुति...
दिनांक 15/09/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुर
पैसा बोलता है ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति
सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंआधुनिकता का कौरा सच
जवाब देंहटाएंऊम्दा रचना
रंगरूट