सृष्टि के अंतिम दिन
उसके और हमारे बीच
कोई नहीं होगा
तब मृत्यु
एक कविता होगी
एक अंतिम कविता
बिना किसी भेद-भाव के
स्वागत करेगी सबका
उस दिन यह दुनिया
न तेरी होगी
न मेरी होगी
जब धरा लुढ़क रही होगी
खुल जायेगा
सिन्धु का तट बंध
बिखर जायेगा अम्बर प्यारा
अंधकार के महागर्त में
खो जायेगा जहाँ सारा
तब हम बहेंगे
पानी बनकर साथ-साथ
नए सिरे से रचना होगी
कुछ क्षण को ही सही
ये दुनिया अपनी होगी
एक ओर हो रहा होगा पतन
कहीं मिलेगा नवयुग को जीवन..!!
अच्छा विश्लेषण है।
जवाब देंहटाएंआपके सार्थक लेखन को अनवरत बनाये रखने हेतु अशेष शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन प्रस्तुति को साझा करने का आभार
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