ध्यान रखो घर के बूढ़ों का, उनसे आँख चुराना क्या
दो बोलों के प्यासे हैं वो, प्यासों को तड़पाना क्या
हिंदू मंदिर, मस्जिद मुस्लिम, चर्च ढूँढते ईसाई
सब की मंज़िल एक है तो फिर, आपस में टकराना क्या
चप्पू छोटे, नाव पुरानी, लहरों का भीषण नर्तन
रोड़े आते हैं तो आएँ, साहिल पर सुस्ताना क्या
अपना दिल, अपनी करनी, फ़िक्र करें क्यों दुनिया की
थोड़े दिन तक चर्चा होगी, चर्चों से घबराना क्या
जलते जंगल, बर्फ पिघलती, कायनात क्यों खफा खफा
जैसी करनी वैसी भरनी, फल से अब कतराना क्या
लेखक परिचय - दिगम्बर नासवा
दो बोलों के प्यासे हैं वो, प्यासों को तड़पाना क्या
हिंदू मंदिर, मस्जिद मुस्लिम, चर्च ढूँढते ईसाई
सब की मंज़िल एक है तो फिर, आपस में टकराना क्या
चप्पू छोटे, नाव पुरानी, लहरों का भीषण नर्तन
रोड़े आते हैं तो आएँ, साहिल पर सुस्ताना क्या
अपना दिल, अपनी करनी, फ़िक्र करें क्यों दुनिया की
थोड़े दिन तक चर्चा होगी, चर्चों से घबराना क्या
जलते जंगल, बर्फ पिघलती, कायनात क्यों खफा खफा
जैसी करनी वैसी भरनी, फल से अब कतराना क्या
लेखक परिचय - दिगम्बर नासवा
उम्दा ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंदिगम्बर नासवा जी की सुन्दर रचना प्रस्तुति के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजलते जंगल, बर्फ पिघलती, कायनात क्यों खफा खफा
जवाब देंहटाएंजैसी करनी वैसी भरनी, फल से अब कतराना क्या
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति !
आभार !
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति साझा करने का आभार
जवाब देंहटाएंआपके सार्थक लेखन को अनवरत बनाये रखने हेतु अशेष शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंअपना दिल, अपनी करनी, फ़िक्र करें क्यों दुनिया की
जवाब देंहटाएंथोड़े दिन तक चर्चा होगी, चर्चों से घबराना क्या
वाह ,,,,बेहतरीन ग़ज़ल
रंगरूट