खता तेरी को खता कहूँ तो | |
मोहब्बत बदनाम होती है | |
हसरतें दिल की तमाम पूरी होती नहीं | |
कुछ कोशिशे नाकाम भी होती हैं | |
इतना खुशनसीब कौन है ज़माने में | |
जिसका दिल कभी टूटा नहीं | |
आखें रोक नहीं सकी दर्द ऐ दिल | |
यहाँ तो रुस्वाई सरे आम होती है | |
वो चाहे या न चाहे ये फैसला | |
उनका ही होता था मुझ पर | |
मेरे दिल ने ख़ुशी इज़हार किया | |
जब उनकी नज़रें मेहरबान होती है | |
यूँ ही नहीं तम्मनाओ के फूल | |
खिलते हैं दिल में हरपल | |
मुरझाये फूलों से पूछो | |
नहीं हर बार कली जवान होती है | |
दिल में उनकी चाहत का ये आलम है | |
कि बेवफाई भी हमसफ़र लगती है | |
रोक लेता हूँ आंसू आँखों में | |
नहीं तो ये मोहब्बत बदनाम होती है | |
भूलने की कोशिश कर रहा हूँ उनको | |
मगर कैसे भूलूँगा ये सोचता हूँ | |
दिल में हसरत कुछ इस तरह परवान है | |
कि उनकी यादों से मुलाकात सुबह-शाम होती है | |
हितेश कुमार शर्मा |
कविता मंच प्रत्येक कवि अथवा नयी पुरानी कविता का स्वागत करता है . इस ब्लॉग का उदेश्य नये कवियों को प्रोत्साहन व अच्छी कविताओं का संग्रहण करना है. यह सामूहिक
ब्लॉग है . पर, कविता उसके रचनाकार के नाम के साथ ही प्रकाशित होनी चाहिये. इस मंच का रचनाकार बनने के लिये नीचे दिये संपर्क प्रारूप का प्रयोग करें,
ब्लौग सेतु....
17 नवंबर 2015
कैसे भूलूँ तेरी मोहब्बत को (ग़ज़ल) .......हितेश कुमार शर्मा
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
सुन्दर रचना,
जवाब देंहटाएंआप सभी का स्वागत है मेरे इस #हिन्दी #ब्लॉग #मेरे #मन #की के नये #पोस्ट #मेरा #घर पर | ब्लॉग पर आये और अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें |
http://meremankee.blogspot.in/2015/11/mera-ghar.html
आपका बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना हितेश जी
जवाब देंहटाएंThanks ji
हटाएं