सर्व धरम पर समदर्शी भाव , है हिन्द
ह्रदय विशाल |
है तुच्छ सोच उनकी जो उठाते
असहिष्णुता के सवाल |
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शांत प्रिय जीवन यहाँ का , और
सुरक्षित है हर दीवार |
पर इसकी विकास की राहों में ,
रोड़े अटकाते कुछ गद्दार |
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जिन्हे दिल में बसाया , वो ही
दिल में खंजर चुभोते हैं |
हिन्द प्रेम का बदला वो नफरत की
भाषा से चुकाते हैं |
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देश द्रोही घोषित करो उनको ,
नहीं जिन्हे राष्ट्र से प्यार |
होगा भला अगर छीन लो उन
से, यहाँ रहने का अधिकार |
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धन- दौलत और शोहरत के ढेर पर
जिनको है बैठाया |
विष घोल कर दूध में , उन्होंने हमें है पिलाया |
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हैं कोई इस दुनिया में जो हिन्द
को आँख दिखा सके |
है कोई जो इसकी सहनशीलता
को मिटा सके |
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हैं गद्दार, जो शांत और शीतल जल
पर पत्थर मार रहे हैं |
और भाई चारे की दीवार को जो जड़
से उखाड़ रहे हैं |
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राष्ट्र- हित में अब हर भारतीय
को अपना फ़र्ज़ निभाना होगा |
कर बहिष्कार ऐसे लोगो का, उनको सबक सिखाना होगा |
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हितेश कुमार
शर्मा |
क्या बाद है...
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव...
सामयिक रचना
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