वक़्त चलता रहा मगर ,
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तेरी
यादें ठहर गयी
इस दिल में
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फिर
वो हसीं चेहरा
सामने आया
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तेरा
ज़िक्र जब आया
महफ़िल में
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तम्मनायों
के फूल सूख
चुके थे
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मेरी
दिल की किताब
में
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फिर दिल की कली खिल उठी
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जब तेरी सूरत नज़र आई
आफताब में
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की
थी दुआ मैंने ये
रब से
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तेरी
यादों का साथ
अब छूट जाए
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और रिस्ता जुड़ा था जो दिल से दिल की
डोर का
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किसी तरह कच्चे धागे सी
टूट जाए
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दिल
तोड़ के चले
जाना तेरा
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कुछ फर्क नहीं अब तुझ में र
कातिल में
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मेरा
बचना नामुमकिन था
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जब
खुद डुबो दिया
मुझे साहिल ने
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नहीं
मालुम कब तक
तेरी यादें
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अब
रहेगी साथ मेरे
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बाहर
की रोशन दुनिया
भी
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नहीं
मिटा सकी मेरे
दिल के अँधेरे
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कविता मंच प्रत्येक कवि अथवा नयी पुरानी कविता का स्वागत करता है . इस ब्लॉग का उदेश्य नये कवियों को प्रोत्साहन व अच्छी कविताओं का संग्रहण करना है. यह सामूहिक
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4 नवंबर 2015
मेरे दिल के अंधेरे
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कविता-मंच के रचनाकार के रूप में आप का स्वागत है।
जवाब देंहटाएंहम आशा करते हैं कि कविता-मंच के रचनाकार के रूप में समय-समय पर अपना योगदान देते रहेगे। सुंदर रचना...
Dhanyawad
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (05-11-2015) को "मोर्निग सोशल नेटवर्क" (चर्चा अंक 2151) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Ji dhanwavad
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