| लड़ी होंगी आज़ादी की कई लड़ाईयां हमारे पूर्वजों ने |
| आज तो हर इंसान अपने आप से लड़ रहा है |
| और इसी तरह अपना भारत आगे बढ़ रहा है ii |
| कहीं बिजली और पानी के लिए हो रही लड़ाई |
| और इन सब पर सीना ताने खड़ी है कमरतोड़ महंगाई |
| एक तरफ भूख से बिलखते लोग |
| और दूसरी तरफ अनाज गोदामों मैं सड़ रहा है |
| और इसी तरह अपना भारत आगे बढ़ रहा है II |
| कोई नहीं सुरक्षित ,चाहे सड़क हो, रेल हो , या हो पैदल |
| अपनों से धोखा, गैरों से सितम , है सकते में हर दिल , |
| राह में राही, हैं आपस में भाई भाई का नारा हुआ दूर |
| अब तो अपनी गलती होने पर भी दूसरे पर अकड़ रहा है |
| और इसी तरह अपना भारत आगे बढ़ रहा है II |
| तन पर कपडा नहीं ,पेट में रोटी नहीं और नहीं है रहने को मकान , |
| इस आजाद देश में भी बन कर रह गयें हैं गुलाम , |
| और दूसरी तरफ कोई अपने को सोने और हीरे से जड़ रहा है |
| और इसी तरह अपना भारत आगे बढ़ रहा है II |
| जहाँ इंसानियत और सराफत का होता नित्य बलात्कार |
| धरम , जाति और मज़हब के लिए मचा है हाहाकार |
| रंगे हाथो पकडे जाने पर भी ,दुसरो पर दोष मड रहा है |
| और इसी तरह अपना भारत आगे बढ़ रहा है II |
| रिश्ते महंगे ,दोस्ती म्हनंगी और हुई दुश्मनी सस्ती , |
| इसी रोग से सभी ग्रस्त हैं क्या शहर, क्या गाँव, क्या बस्ती |
| प्रेम की किताब से हर कोई नफरत की भाषा पढ़ रहा है |
| और इसी तरह अपना भारत आगे बढ़ रहा है II |
| अपने हित के लिए क्यों इंसान सब को बेगाना कर रहा है |
| तू क्यों करता है वो सब जो सारा जमाना कर रहा है |
| चार दिन की जिंदगी और सालों से भटक रहा है |
| और इसी तरह अपना भारत आगे बढ़ रहा है II |
| थी जो गुलामी की अब टूट चुकी हैं वो जंजीरें |
| चंद के हाथों से लिखी जाती हैं सरे देश की तकदीरें |
| और पूरा भारत अब इन्हिकी मुठी में सिकुड़ रहा है |
| और इसी तरह अपना भारत आगे बढ़ रहा है II |
| हितेश कुमार शर्मा |
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23 नवंबर 2015
अपना भारत आगे बढ़ रहा है.........हितेश कुमार शर्मा
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सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....
बढिया नज्म...
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत धन्यवाद
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