जुम्बिशे तो हर इक उम्र की होगी
कसमसाहटो की आहटे भी होगी ,
शायद इसलिए हि
कल की ज़िक्र कर
आज हि संवर जाते ,
ज़िस्त यू हि
कटती जाती
किसी ने कहाँ ?
क्यू कल की चिंता . .
वो भी आजमा कर..
रुकी हुई सी ज़ीस्त
कसमसाती ज़ज़्बातो की आहटें
शायद इसलिए हि
कल की ज़िक्र कर
आज हि संवर जाते हैं
हर उम्र की देहरी को
इस तरह लांघे जाते हैं
क्या जाने ?
इम्ऱोज का फ़र्दा क्या हो
पर हर ज़ख़्म पिए जाते हैं
हर खलिश को दफ़न कर
मुदावा खोज़ लाते हैं
शायद वो फ़र्दा हमारा होगा
ये सोच कर ,.
ज़ुम्बिशें ही सही
दरमांदा,पशेमान से मुलाकात भी
पर बाज़ाब्ता
हर उम्र के इक देहरी को
कुछ इस तरह
लांघे जाते हैं..
-पम्मी
चित्र गूगूल के संभार से
वाह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन..
जी, धन्यवाद,
हटाएंबहुत उम्दा ।
जवाब देंहटाएंजी,धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंब्लाॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार, सर.
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