ख़ुद जिओ
अपने जियें,
और
काल-कवलित
हो जायें।
कितना नाज़ां / स्वार्थी
और वहशी है तू ,
तेरे रिश्ते
रिश्ते हैं
औरों के फ़ालतू।
चलो अब फिर
समझदार,
नेक हो जायें,
अपनी ज़ात
फ़ना होने तक
क्यों बौड़म हो जायें....?
क़ुदरत की
करिश्माई कृति = इंसान
सृजन को
विनाश के
मुहाने पर
लाने वाला =इंसान।
महक फूलों की
दिशा कब
तय कर पाती,
आब -ओ - हवा
सरहदों के
नक़्शे कभी न पढ़ पाती।
अंडे रखने को
तिनके
चुनकर
चुनकर
चिड़िया चोंच में दबाकर ,
सीमांत इलाक़ों में
सीमांत इलाक़ों में
कुछ इधर से
कुछ उधर से लाती।
बहती है नदी
ख़ुद क्या ले पाती,
रौशनी सूरज की
जगमगाती जग को,
तब हरी पत्तियां
भोजन बनातीं,
शुभ्र चाँदनी में रातें
ख़ूब खुलकर खिलखिलातीं ।
ऑक्सीजन
देते-देते पेड़
कभी न हारे हैं ,
इंसान तेरी
पैसे की हवस ने
कितने मज़लूम मासूम मारे हैं।
तमसभरी राह में
कोई लड़खड़ा गया है,
अँधेरा बहुत
अब तो गहरा गया है,
घनेरा आलोचा गया अँधेरा,
घनेरा आलोचा गया अँधेरा,
अब दरवाज़े पर एक दीपक जलायें ,
उकता गया है मन....... चलो
उकता गया है मन....... चलो
नींद आने तक दादी से सुनें कथाऐं।
#रवीन्द्र सिंह यादव
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (04-09-2017) को "आदमी की औकात" (चर्चा अंक 2717) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी रचना को चर्चामंच का हिस्सा बनाने के लिए। सादर।
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय ओंकार जी उत्साहवर्धन के लिए। सादर।
हटाएंबहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय विश्व मोहन जी उत्साहवर्धन के लिए ।
हटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंसादर नमन सर।
हटाएंहार्दिक आभार रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए।
लाज़वाब !
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय ध्रुव जी उत्साहवर्धन के लिए ।
हटाएंबहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीया मीना जी ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन करने के लिए ।
हटाएंहार्दिक आभार आदरणीया बहन जी रचना को प्रतिष्ठित मंच देने के लिए।
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