उठो चलो
जी चुके बहुत
सहारों में,
ढूँढ़ो न आसरा
धूर्तों-मक्कारों में।
सुख के पलछिन
देर-सवेर
आते तो हैं ,
पर ठहरते नहीं
कभी बहारों में।
मतवाली हवाओं
का आना -जाना
ब-दस्तूर ज़ारी है ,
ग़ौर से देखो
छायी है धुंध
दिलकश नज़ारों में।
फ़ज़ाओं की
बे-सबब बे-रुख़ी से
ऊब गया है मन ,
फुसफुसाए जज़्बात
दिल की
दीवारों में।
रोने से
अब तक भला
किसे क्या मिला,
मिलता है
जीभर सुकूं
वक़्त के मारों में।
हवाऐं ख़िलाफ़
चलती हैं
तो चलने दे ,
जुनूं लफ़्ज़ों से
खेलने का
पैदा कर क़लमकारों में।
मझधार की
उछलती लहरें
बुला रही हैं,
कब तक
सिमटे हुए
बैठे रहोगे किनारों में।
परिंदे भी
चहकते ख़्वाब
सजाते रहते हैं ,
उड़ते हैं
कभी तन्हा
कभी क़तारों में।
@रवीन्द्र सिंह यादव
जी चुके बहुत
सहारों में,
ढूँढ़ो न आसरा
धूर्तों-मक्कारों में।
सुख के पलछिन
देर-सवेर
आते तो हैं ,
पर ठहरते नहीं
कभी बहारों में।
मतवाली हवाओं
का आना -जाना
ब-दस्तूर ज़ारी है ,
ग़ौर से देखो
छायी है धुंध
दिलकश नज़ारों में।
फ़ज़ाओं की
बे-सबब बे-रुख़ी से
ऊब गया है मन ,
फुसफुसाए जज़्बात
दिल की
दीवारों में।
रोने से
अब तक भला
किसे क्या मिला,
मिलता है
जीभर सुकूं
वक़्त के मारों में।
हवाऐं ख़िलाफ़
चलती हैं
तो चलने दे ,
जुनूं लफ़्ज़ों से
खेलने का
पैदा कर क़लमकारों में।
मझधार की
उछलती लहरें
बुला रही हैं,
कब तक
सिमटे हुए
बैठे रहोगे किनारों में।
परिंदे भी
चहकते ख़्वाब
सजाते रहते हैं ,
उड़ते हैं
कभी तन्हा
कभी क़तारों में।
@रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन क्षणिकाएँ
जवाब देंहटाएंसादर
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 18 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"पाँच लिंकों का आनंद " में रचना को शामिल करने के लिए और उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार बहन जी।
हटाएंवाह्ह्ह....रवींद्र जी लाज़वाब क्षणिकाएँ है।👌👌
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार श्वेता जी उत्साहवर्धन के लिए ।
हटाएंबेहतरीन रचना.
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार विनोद जी।
हटाएंबहुत सुंदर रचना!!!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार विश्व मोहन जी टिप्पणी के लिए।
हटाएंउछलती लहरें
जवाब देंहटाएंबुला रही हैं,
कब तक
सिमटे हुए
बैठे रहोगे किनारों में।
आपकी ये पंक्तियाँ मानव में सोये हुए आत्म विश्वास को जगाती है बहुत खूब आदरणीय रवींद्र जी आभार
"एकलव्य''
हार्दिक आभार ध्रुव जी सुन्दर ,प्रेरक टिप्पणी के लिए।
हटाएंक्षमता को पहचानने का आह्वान
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार गगन जी मनोबल बढ़ाने के लिए।
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसादर आभार सर उत्साहवर्धन के लिए।
हटाएंआदरणीय रवीन्द्र जी आपके काव्य शिल्प का एक नया रंग देख अच्छा लगरहा है -- जन के प्रति चिंतन की और मुड़ता सृजन बहुत कुछ कहता है -- शुभकामना
जवाब देंहटाएंआदरणीय रेणु जी हार्दिक आभार लिखने के लिए उत्साहित करने के लिए। आपकी टिप्पणियां रचनाकारों को ऊर्जावान कर देती हैं।
हटाएंबहुत ही सुन्दर...
जवाब देंहटाएंलाजवाब क्षणिकाएं..।
एक से बढ़कर एक...
वाह!!!
बहुत-बहुत आभार सुधा जी टिप्पणी के लिए।
हटाएं