एक तुम्हारा साथ सजनी
हमको हम से प्यारा है
तुम चाह जीवन की मेरे
प्रेरक साथ तुम्हारा है....
बैठो जो पहलू में मेरे
रचूँ कविता साँझ-सवेरे
रहूँ निरखता रूप तुम्हारा
चंदा ज्यूँ बदली को घेरे....
करलूँ मैं बातें मीठी सी
रंग लूँ रात प्यार में
छू लूँ मैं हलके से तुमको
सावन की बहार में...
नैनों में देखूँ मैं दुनिया
दामन में सुख सपनों का
हाथों में निरखूँ मैं किस्मत
आँगन को घर आपनों का....
.............................................© के. एल. स्वामी 'केशव'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (17-07-2017) को "खुली किताब" (चर्चा अंक-2669) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद महोदय !
हटाएंवाह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
सादर
आभार महोदया !
हटाएंउत्तम प्रस्तुति।
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