कोई कुछ कह रहा है,
ये हवाएं जो बह रही हैं |
उड़ती चिड़ियाँ कुछ कह रही हैं,
छाय बदल भी कुछ कह रहे हैं |
रात को जुगनू कुछ कह रहा है,
नीला आसमान कुछ कह रहा है |
अब ये तारे, ये जमीं, ये पौधे,
ये पूरी दुनियां यही कह रही है |
हवा और नदियां बह रही हैं,
क्यों आवाज जहर बन रही है |
वो पवित्र नदी नाला बन कर,
क्यों जहर बनकर बह रही है |
जिंदगी क्यों नरक बन रही है,
रोक लो यारों ये हर कोई कह रहा है | |
नाम : देवराज कुमार ,कक्षा : 7th ,अपनाघर।
ये बिहार के रहने वाले देवराज हैं| इन्होंने एक से एक बढ़कर कविताऍं लिखी हैं| अबतक इन्होनें लगभग ५० -६० कविताऍं लिख चुके हैं| इनको डांस करना बेहद पसंद है| क्रिकेट में छक्के बहुत मारते हैं| हर वक्त कुछ नया सिखने को चाहते है| ये कक्षा सात में पढ़ते है| अपना घर परिसर में रहकर अपनी शिक्षा को मजबूत बना रहे हैं|
इनके माता - पिता ईंट भठ्ठे में बंधुआ मजदूर की तरह काम कर रहे हैं| ये बड़े होकर एक नेक इंसान तथा एक अच्छे खेल के खिलाड़ी बनना चाहते हैं |
दिनांक 22/08/2017 को...
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-08-2017) को "सभ्यता पर ज़ुल्म ढाती है सुरा" (चर्चा अंक 2704) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी रचना बहुत ही सराहनीय है ,शुभकामनायें ,आभार
जवाब देंहटाएं"एकलव्य"
बहुत खूब लिखा है ... शुभकामनायें ...
जवाब देंहटाएंवाह
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