अँग्रेज़ी हुक़ूमत के
ग़ुलाम थे हम
15 अगस्त 1947 से पूर्व
अपनी नागरिकता
"ब्रिटिश-इंडियन"
लिखते थे हम
आज़ादी मिलने से पूर्व।
ऋषि-मुनियों का
दिया परिष्कृत ज्ञान
शोध / तपस्या से
विकसित विज्ञान
राम-कृष्ण का
जीवन दर्शन
पतंजलि का योग-दर्शन
कपिल का सांख्य-दर्शन
नियत-नीति-न्याय में
विदुर-चाणक्य का आकर्षण
बुद्ध-महावीर के अमर उपदेश
करुणा और अहिंसा के संदेश
जन-जन तक न पहुँचा सके हम
सूत्र एकता का अटूट न बना सके हम।
अहंकार के अस्त्र-शस्त्र
और स्वहित की परिधि
खींचते गए लकीरें सरहदी
बनते गए क़िले
बंटती रही झील-नदी
राष्ट्रीयता का भाव
रियासती हो गया
सूरमाओं का मक़सद
किफ़ायती हो गया
सरहदी मुल्क़ों से
आक्रांता / लुटेरे आते-जाते रहे
कुछ बस गए
कुछ माल-दौलत ले जाते रहे
कुछ जनता के अज़ीज़ हो गए
कुछ इश्क़ के मरीज़ हो गए।
कारवां अनवरत
चलते रहे
लोग वक़्त की
माँग में ढलते रहे
व्यथित जनमानस
को राह दिखाने
सूर-तुलसी-कबीर-चिश्ती-रहीम आये
प्रेम और ज्ञान का
संदेश लेकर
नानक- रैदास -मीरा-जायसी भी छाये।
चतुर व्यापारी
देश के
हुक्मरान हो गए
हमारे जज़्बात भी
पहरों में
लहूलुहान हो गए
कश्मीर की वादियों से
कन्याकुमारी में
समुंदर की लहरों तक
एक अन्तः सलिला बही
स्वाधीनता की
क्रांतिमय पावन बयार
देशभर में अलख जगाती रही।
यातना के दौर
आज़ादी के दीवानों ने सहे
अनगिनत किस्से हैं
अपने कहे-अनकहे
उपलब्धियों पर आज
फिर नाज़ होने लगा है
स्वराज के मिशन पर
असमानता और चालाकी का
फिर राज होने लगा है।
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई
मिल जाओ सब छोड़ बुराई
हो गए मुक़म्मल
आज़ादी के सत्तर बरस
आओ मनाएं इकहत्तरवां
स्वाधीनता-दिवस।
जय हिन्द !
# रवीन्द्र सिंह यादव
ग़ुलाम थे हम
15 अगस्त 1947 से पूर्व
अपनी नागरिकता
"ब्रिटिश-इंडियन"
लिखते थे हम
आज़ादी मिलने से पूर्व।
ऋषि-मुनियों का
दिया परिष्कृत ज्ञान
शोध / तपस्या से
विकसित विज्ञान
राम-कृष्ण का
जीवन दर्शन
पतंजलि का योग-दर्शन
कपिल का सांख्य-दर्शन
नियत-नीति-न्याय में
विदुर-चाणक्य का आकर्षण
बुद्ध-महावीर के अमर उपदेश
करुणा और अहिंसा के संदेश
जन-जन तक न पहुँचा सके हम
सूत्र एकता का अटूट न बना सके हम।
अहंकार के अस्त्र-शस्त्र
और स्वहित की परिधि
खींचते गए लकीरें सरहदी
बनते गए क़िले
बंटती रही झील-नदी
राष्ट्रीयता का भाव
रियासती हो गया
सूरमाओं का मक़सद
किफ़ायती हो गया
सरहदी मुल्क़ों से
आक्रांता / लुटेरे आते-जाते रहे
कुछ बस गए
कुछ माल-दौलत ले जाते रहे
कुछ जनता के अज़ीज़ हो गए
कुछ इश्क़ के मरीज़ हो गए।
कारवां अनवरत
चलते रहे
लोग वक़्त की
माँग में ढलते रहे
व्यथित जनमानस
को राह दिखाने
सूर-तुलसी-कबीर-चिश्ती-रहीम आये
प्रेम और ज्ञान का
संदेश लेकर
नानक- रैदास -मीरा-जायसी भी छाये।
चतुर व्यापारी
देश के
हुक्मरान हो गए
हमारे जज़्बात भी
पहरों में
लहूलुहान हो गए
कश्मीर की वादियों से
कन्याकुमारी में
समुंदर की लहरों तक
एक अन्तः सलिला बही
स्वाधीनता की
क्रांतिमय पावन बयार
देशभर में अलख जगाती रही।
यातना के दौर
आज़ादी के दीवानों ने सहे
अनगिनत किस्से हैं
अपने कहे-अनकहे
उपलब्धियों पर आज
फिर नाज़ होने लगा है
स्वराज के मिशन पर
असमानता और चालाकी का
फिर राज होने लगा है।
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई
मिल जाओ सब छोड़ बुराई
हो गए मुक़म्मल
आज़ादी के सत्तर बरस
आओ मनाएं इकहत्तरवां
स्वाधीनता-दिवस।
जय हिन्द !
# रवीन्द्र सिंह यादव
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (16-08-2017) को "कैसी आज़ादी पाई" (चर्चा अंक 2698) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
स्वतन्त्रता दिवस और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय आपका हार्दिक आभार। रचना को चर्चा मंच का हिस्सा बनाये जाने पर हार्दिक प्रसन्नता हुई।
हटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंरचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।
हटाएंसुन्दर विवेचना स्वाधीनता से पराधीनता और आज़ादी की लड़ाई और फिर स्वतंत्रता। लम्बे सफर का भावुक प्रस्तुतीकरण।
जवाब देंहटाएं