देखा है उनको निर्जीव हाथी को पूजते हुये।
देखा था कल हाथी को महावत से जूझते हुये।।
देखा उन्हें है जिंदा सांप को लाठी से मरते हुये ।
देखा है पत्थर के सांप की आरती उतरते हुये।।
पत्थर की औरत की वो आराधना करते है।
किन्तु घर की औरत पर वो प्रताड़ना करते है।।
आज भी तो मुझे समझ ये राज मे नही आता है।
---- हिमांशु मित्रा 'रवि' ----
दिनांक 29/08/2017 को...
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-08-2017) को कई सरकार खूंटी पर, रखी थी टांग डेरे में-: चर्चामंच 2711 पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सत्य विचार , तर्कसंगत विषय आपकी रचना बहुत ही सराहनीय है ,शुभकामनायें ,आभार
जवाब देंहटाएं"एकलव्य"
बहुत तार्किक भाव लिए है रचना ...
जवाब देंहटाएंक्या बात है !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ! काबिलेतारीफ़ आभार। "एकलव्य"
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