मेरे लिये शब्द एक औजार है.
भीतर की टूट-फूट
उधेडबुन अव्यवस्था और अस्वस्थता
की शल्यक्रिया के लिये।
शब्द एक आईना,
यदा-कदा अपने स्वत्व से
साक्षात्कार के लिये।
मेरे लिये शब्द संगीत है.
ज़िन्दगी के सारे राग
और सुरों को समेटे हुए।
दोपहर की धूप में भोर की चहचहाट है तो
रात की कालिख़ में नक्षत्रों की टिमटिमाहट।
मेरे लिये शब्द एक ढाल है,
चाही-अनचाही लड़ाइयों में
अपनी सुरक्षा के लिये।
मेरे लिये शब्द आँसू हैं,
यंत्रणा और विषाद की अभिव्यक्ति के लिये।
हताशा की भंवरों से लड़ने का सम्बल है।
शब्द एक रस्सी की तरह,
मन के अन्धे गहरे कुएं में
दफ़न पड़ी यादों को खंगालने के लिये।
शब्द एक प्रतिध्वनि है,
वीरान/ अकेली/ निर्वासित नगरी में
हमसफ़र की तरह
साथ चलने के लिये।
-श्रीमती डॉ. प्रभा मुजुमदार
अति सुंदर अभिव्यक्ति👌
जवाब देंहटाएंवाह!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
हमारे पास शब्द हैं, तभी हम इंसान हैं वर्ना हममें और पशुओं में ज्यादा अंतर ना होता।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !