| तुझ से जो नज़र मिली |
| तो मुस्कराना आ गया |
| तुम्हारी जुल्फ उडी जो हवा में |
| तो मौसम सुहाना आ गया |
| खबर नहीं थी कि इक दिन |
| इस दिल की ये आरज़ू पूरी होगी |
| उमीदों का सवेरा होगा |
| और हर शाम सिन्दूरी होगी |
| सुर अपने आप जुड़ने लगे |
| और मुझे गाना आ गया |
| तुझ से जो नज़र मिली |
| तो मुस्कराना आ गया |
| तुम्हारी पायल की छम-छम पर |
| दिल मेरा अब नाच उठा है |
| हसरतों के दरिया में अब |
| उफान सा कुछ आ चुका है |
| भंवर के बीच फंसी नाव |
| का अब ठिकाना आ गया |
| तुझ से जो नज़र मिली |
| तो मुस्कराना आ गया |
| तेरे बदन की खुशबु |
| हवाओं में जो मिल गयी |
| भटकते हुए मुसाफिर को |
| खोयी हुई मंजिल अब मिल गयी |
| तुम आई तो इस गरीब के पास |
| बादशाहों का खज़ाना आ गया |
| तुझ से जो नज़र मिली |
| तो मुस्कराना आ गया |
| तेरे होंठो की लाली को देख |
| फूल भी खिलना भूल गए |
| गुजरी थी जो उम्र तेरे बिन |
| जिंदगी क वो दिन फजूल गए |
| ये तेरी नज़र का ही कमाल है |
| कि मुसाफिर को मंजिल पाना आ गया |
| तुझ से जो नज़र मिली |
| तो मुस्कराना आ गया |
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26 फ़रवरी 2016
मुस्कराना आ गया (ग़ज़ल)
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ji aapka bahut bahut shukriya
जवाब देंहटाएंवाह..
जवाब देंहटाएंमुस्करवा दिया न
आज नहीं मुस्कराऊँगी सोची थी मैं
सादर
Dhanyawaad ji
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंक्या बात है !.....बेहद खूबसूरत रचना....
जवाब देंहटाएंThanks all
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