मदिरालय जाने को
घर से चलता है पीनेवाला,
'किस पथ से जाऊँ?'
असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ
बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
'राह पकड़ तू एक
चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'। ६।
चलने ही चलने में
कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
'दूर अभी है',
पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढूँ
आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
किंकर्तव्यविमूढ़
मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।।७।
मुख से तू अविरत
कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
हाथों में अनुभव
करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
ध्यान किए जा मन
में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
और बढ़ा चल,
पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला।।८।
मदिरा पीने की
अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
अधरों की आतुरता
में ही जब आभासित हो प्याला,
बने ध्यान ही
करते-करते जब साकी साकार, सखे,
रहे न हाला,
प्याला, साकी, तुझे मिलेगी
मधुशाला।।९।
सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,
सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
बस आ पहुंचे,
दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।।१०।
thanx for such nice posting..
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