कुछ ख़्वाब इस तरह से जहां में बिखर गए
अहसास जिस क़द्र थे वो सारे ही मर गए
जीना मुहाल था जिसे देखे बिना कभी
उसके बग़ैर कितने ज़माने गुज़र गए
माज़ी किताब है या अरस्तु का फ़लसफ़ा
औराक़ जो पलटे तो कई पल ठहर गए
कब उम्र ने बिखेरी है राहों में कहकशां
रातें मिली स्याह, उजाले निखर गए
सहरा में ढूंढते हो घटाओं के सिलसिले
दरिया समन्दरों में ही जाकर उतर गए
कुछ कर दिखाओ, वक़्त नहीं सोचने का अब
शाम हो गई तो परिंदे भी घर गए
'फ़िरदौस' भीगने की तमन्ना ही रह गई
बादल मेरे शहर से न जाने किधर गए
-फ़िरदौस ख़ान
हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} पर किसी भी प्रकार की चर्चा आमंत्रित है ये एक सामूहिक ब्लॉग है। कोई भी इनका चर्चाकार बन सकता है। हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल का उदेश्य कम फोलोवर्स से जूझ रहे ब्लॉग्स का प्रचार करना एवं उन पर चर्चा करना। यहॉ भी आमंत्रित हैं। आप techeduhub@gmail.com पर मेल भेजकर इसके सदस्य बन सकते हैं। प्रत्येक चर्चाकार का हृद्य से स्वागत है। सादर...ललित चाहार
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंसादर।
'फ़िरदौस' भीगने की तमन्ना ही रह गई
जवाब देंहटाएंबादल मेरे शहर से न जाने किधर गए
बहुत सुन्दर .
'फ़िरदौस' भीगने की तमन्ना ही रह गई
जवाब देंहटाएंबादल मेरे शहर से न जाने किधर गए
गज़ब !!
आप सभी का तहे-दिल से शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (08-09-2014) को "उसके बग़ैर कितने ज़माने गुज़र गए" (चर्चा मंच 1730) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'