1.
देखो, आहिस्ता चलो
देखो, आहिस्ता चलो, और भी आहिस्ता ज़रा
देखना, सोच-सँभल कर ज़रा पाँव रखना
ज़ोर से बज न उठे
पैरों की आवाज़ कहीं
काँच के ख़्वाब
हैं बिखरे हुए तन्हाई में
ख़्वाब टूटे न कोई,
जाग न जाये देखो
जाग जायेगा कोई
ख़्वाब तो मर जायेगा |
2.
मैं सिगारेट तो
नही पिता
मैं सिगारेट तो नही पिता
पर हर आनेवेलेसे
पुँछ लेता हूँ
’माचिस हैं?’
बहोत कुछ है जिसे
में
जला देना चाहता
हूँ...
मगर हिम्मत नही
होती
3.
जलते शहर में
बैठा शायर
जलते
शहर में बैठा शायर
इससे ज्यादा करे
भी क्या?
अल्फ़ाज़ से जखम
नही भरते
नज़्मो से खराशे
नही भरती
4.
नज़्म उलझी हुई
है सीने में
नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए
हैं होठों पर
उड़ते-फिरते हैं
तितलियों की तरह
लफ़्ज़ काग़ज़ पे
बैठते ही नहीं
कब से बैठा हुआ
हूँ मैं जानम
सादे काग़ज़ पे
लिखके नाम तेरा
बस तेरा नाम ही
मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज़्म
क्या होगी
सुन्दर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति! हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} की पहली चर्चा हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-001 में आपका सह्य दिल से स्वागत करता है। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar
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