वो ख़यालों में
अगर यूं मुब्तला रह जाएगा ।
कारवां लूट जाएगा
औ' काफिला रह जाएगा ।
इस हक़ीक़त से
कभी भी हम नहीं अंजान थे-
मुफ़लिसी में
सबसे रस्मी सिलसिला रह जाएगा ।
तुम चमन से खार
को बाहर निकालोगे; मगर-
ये कहो- क्या खार
के बिन गुल खिला रह पाएगा-? (उन सबको जो मुझे
या किसी भी सदस्य को समूह से निकालने की सिफ़ारिश कर रहे थे ....)
गर हमारे बीच यूं
ही दूरियाँ बढ़ती रहीं-
रास्ते गुम
जाएँगे और फासला रह जाएगा । (वैचारिक मतभेदों को व्यक्तिगत स्तर तक उतारने वालों
को एक सलाह..............)
वक़्त का मरहम
हमारे जख्म तो भर जाएगा,
"कृष्ण" को
पर याद तेरा 'वो' सिला रह जाएगा । (एक
"भूतपूर्व" मित्र को मकते का ये शेर खास तौर पर नज़र है)
सादर-
आनंदकृष्ण,
भोपाल
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