[इंस्टिट्यूशन ऑफ़
इंजीनियर्स, लोकल सेंटर जबलपुर
द्वारा गगनचुम्बी भवन (हाई राइज बिल्डिंग) पर १०-११ अगस्त २०१३ को आयोजित अखिल
भारतीय संगोष्ठी की स्मारिका
में प्रकाशित कुछ
दोहे।]
दोहा सलिला :
भवन माहात्म्य
संजीव
*
भवन मनुज की
सभ्यता, ईश्वर का वरदान।
रहन चाहें भवन
में, भू पर आ भगवान।१।
*
भवन बिना हो
जिंदगी, आवारा-असहाय।
अपने सपने ज्यों 'सलिल', हों अनाथ-निरुपाय।२।
*
मन से मन जोड़े
भवन, दो हों मिलकर एक।
सब सपने साकार
हों, खुशियाँ मिलें अनेक।३।
*
भवन बचाते
ज़िन्दगी, सड़क जोड़ती देश।
पुल बिछुडों को
मिलाते, तरु दें वायु हमेश।४।
*
राष्ट्रीय संपत्ति
पुल, सड़क इमारत वृक्ष।
बना करें रक्षा
सदा, अभियंतागण दक्ष।५।
*
ह्ब्वं सड़क पुल
रच बना, आदम जब इंसान।
करें देव-दानव
तभी, मानव का गुणगान।६।
*
कंकर को शंकर
करें, अभियंता दिन-रात।
तभी तिमिर का अंत
हो, उगे नवल प्रभात७।
*
भवन सड़क पुल से
बने, देश सुखी संपन्न।
भवन सेतु पथ के
बिना, होता देश विपन्न।८।
*
इमारतों की
सुदृढ़ता, फूंके उनमें जान।
देश सुखी-संपन्न
हो, बढ़े विश्व में शान।९।
*
भारत का नव तीर्थ
है, हर सुदृढ़ निर्माण।
स्वेद परिश्रम
फूँकता, निर्माणों में प्राण।१०।
*
अभियंता तकनीक से,
करते नव निर्माण।
होता है जीवंत तब,
बिना प्राण पाषाण।११।
*
भवन सड़क पुल ही
रखें, राष्ट्र-प्रगति की नींव।
सेतु बना तब पा
सके, सीता करुणासींव।१२।
*
करे इमारत को
सुदृढ़, शिल्प-ज्ञान-तकनीक।
लगन-परिश्रम से
बने, बीहड़ में भी लीक।१३।
*
करें कल्पना
शून्य में, पहले फिर साकार।
आंकें रूप अरूप
में, यंत्री दे आकार।१४।
*
सिर्फ लक्ष्य पर
ही रखें, हर पल अपनी दृष्टि।
अभियंता-मजदूर
मिल, रचें नयी नित सृष्टि।१५।
*
सडक देश की
धड़कनें, भवन ह्रदय पुल पैर।
वृक्ष
श्वास-प्रश्वास दें, कर जीवन
निर्वैर।१६।
*
भवन सेतु पथ से
मिले, जीवन में सुख-चैन।
इनकी रक्षा कीजिए,
सब मिलकर दिन-रैन।१७।
*
काँच न तोड़ें भवन
के, मत खुरचें दीवार।
याद रखें हैं भवन
ही, जीवन के आगार।१८।
*
भवन न गन्दा हो 'सलिल', सब मिल रखें खयाल।
कचरा तुरत हटाइए,
गर दे कोई डाल।१९।
*
भवनों के चहुँ और
हों, ऊंची वृक्ष-कतार।
शुद्ध वायु
आरोग्य दे, पायें ख़ुशी अपार।२०।
*
कंकर से शंकर गढ़े,
शिल्प ज्ञान तकनीक।
भवन गगनचुम्बी
बनें, गढ़ सुखप्रद नव लीक।२१।
*
वहीं गढ़ें
अट्टालिका जहाँ भूमि मजबूत।
जन-जीवन हो
सुरक्षित, खुशियाँ मिलें अकूत।२२।
*
ऊँचे भवनों में रखें, ऊँचा 'सलिल' चरित्र।
रहें प्रकृति के मित्र बन, जीवन रहे पवित्र।२३।
*
रूपांकन हो भवन का, प्रकृति के अनुसार।
अनुकूलन हो ताप का, मौसम के अनुसार।२४।
*
वायु-प्रवाह बना रहे, ऊर्जा पायें प्राण।
भवन-वास्तु शुभ कर सके, मानव को सम्प्राण।२५।
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ऊँचे भवनों में रखें, ऊँचा 'सलिल' चरित्र।
रहें प्रकृति के मित्र बन, जीवन रहे पवित्र।२३।
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रूपांकन हो भवन का, प्रकृति के अनुसार।
अनुकूलन हो ताप का, मौसम के अनुसार।२४।
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वायु-प्रवाह बना रहे, ऊर्जा पायें प्राण।
भवन-वास्तु शुभ कर सके, मानव को सम्प्राण।२५।
*
Sanjiv verma 'Salil'
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