आओ फिर कवितायें
जी लें
पीड़ा धुंध
अँधेरा काँटे
पांव पांव में
पड़ी विवाई
मेरी पीड़ा तेरी
पीड़ा
सबकी पीड़ा है
दुखदाई
आईने में अपने
सँग सँग
तनिक दूसरों को
भी देखें
और देख कर उनके
आँसू
अपनी आहें मुँह
में सी लें
आओ फिर कवितायें
जी लें
संबोधन से
परिवर्तित कब
होते कहो अर्थ
भावों के
ढूँढ़ें हम वे
शब्द करें जो
प्रतिनिध्त्व बस
अनुरागों के
रचें शब्द वे नये
बसी हो
जिनमें वासुधैव
की खुश्बू
अपने घर ही नहीं,गांव भर
में जाकर टाँकें
कंदीलें
आओ फ़िर कवितायें
जी लें
चुटकी भर या
मुट्ठी भर ही
तो है पास समय की
पूँजी
करें खर्च यह
तनिक जतन से
प्राप्त नहीं
होगी फिर दूजी
ध्वंसों के
बिखरावों से हम
निर्मित करें
नीड़ नूतन ही
नीलकंठ के
अनुयायी हो
बरसा हुआ हलाहल
पी लें
आओ फिर कवितायें
जी लें.
राकेश खंडेलवाल
कविता को तो जी भी ले सेकिन कविता के पीछे के दर्द को कैसे पीए
जवाब देंहटाएंदुःख कवि हृदय को ईश्वर का वरदान है.
जवाब देंहटाएंपीड़ा धुंध अँधेरा काँटे
पांव पांव में पड़ी विवाई
मेरी पीड़ा तेरी पीड़ा
सबकी पीड़ा है दुखदाई
ये पंक्तियाँ वहीँ से आती हैं , ह्रदय की जिस जगह को दुःख गहरा कर देता है ,
अच्छी प्रस्तुति.