विष
का कलश लिये धन्वन्तरि
+रमेशराज
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कार्तिक बदी त्रयोदशी को कृष्ण पक्ष में रात को घर की
देहरी पर दीप प्रज्वलित कर अँधियारे पर प्रकाश की जीत का शंखनाद करने वाले त्योहार
का नाम धनतेरस है। माना जाता है कि समस्त प्राणी जगत की रुग्ण काया का उपचार करने हेतु
इसी दिन समुद्र-मन्थन के समय अमृतकलश लेकर वैद्य धनवन्तरि प्रकट हुए थे।
वैद्य धन्वन्तरि ने विभिन्न सरल और जटिल रोगों-व्याधियों
के उपचार हेतु अमृत स्वरूपा अनेक औषधियों की खोज की। उपचार के अचूक विधान प्रस्तुत
किये। उन जड़ी-बूटियों की पहचान करायी, जिनसे जीवनीशक्ति
का ह्रास होने से रोका जा सके। कैंसर, तपैदिक, दमा, मधुमेह जैसी असाध्य बीमारियों को साध्य बनाया। धनवन्तरि
लोभी-लालची नहीं थे। चिकित्सा के क्षेत्र में उनका योगदान मंगलकारी और समाजसेवा से
ओत-प्रोत है। इसीलिये चिकित्सा के क्षेत्र में उन्हें वह गौरव और अमरता प्राप्त है,
जो उन्हें देवतुल्य बनाती है।
आज भी ऐसे अनेक वैद्य या चिकित्सक हैं, जो मानवीय संवेदना से जुड़े हैं। गरीब, असहाय,
निराश्रितों का इलाज सहानुभूतिपूर्वक करते हैं। ऐसे चिकित्सकों के चिकित्सालय
से कोई भी निराश नहीं लौटता।
परसेवा को समर्पित ऐसे देवतुल्य धन्वतरियों के विपरीत
आज ऐसे धन्वतरियों की भी पूरी की पूरी फौज दिखायी होती है, जिनके पास रोगी के लिये गिद्ध दृष्टि उपलब्ध है। मन में लोभ और लालच कुलाँचें
भरता है। समाजसेवा के नाम पर समाज का आर्थिक दोहन करने में लगे ऐसे ज्ञानवान डिग्रीधारी
ब्रह्मराक्षसों के लिये हर रोगी उनकी ऐसी प्रयोगशाला बन चुका है, जिसमें अनावश्यक अत्याधिक खर्चीली जाँचें सिर्फ धन ऐंठने को करायी जाती हैं।
अपने ही अस्पताल में स्थापित की गयी औषधियों की दूकान से मरीज को महँगी से महँगी दवाएँ
दी जाती हैं। मरीज का सही उपचार करना इनका उद्देश्य नहीं। ये मरीज और उसके तीमारदारों
को गिद्ध की तरह नोचते रहना चाहते हैं। भले
ही समुद्र-मंथन के समय इनके आदि पिता अमृत कलश लेकर प्रकट हुए हों, किन्तु उसी आदि पिता की आधुनिक सन्तानें आज उस अमृत कलश को त्याग कर अपनी आत्मा
को एक ऐसे विष कलश से भरे हुए हैं, जिससे रिसकर बाहर निकलने वाली
हर बूँद आदमी को स्वस्थ करने के स्थान पर बीमार अधिक बनाती है। इलाज कराने वाला मरीज
भले ही अपनी आर्थिक विवशता का रोना रोये, ये बिलकुल नहीं पसीजते।
सरकारी डाक्टर भी चोरी-छुपे अपना एक ऐसा अस्प्ताल चलाते हैं, जिसमें मरीज की जेब को काटा जाता है।
वैद्य धनवन्तरि के प्रतीक पुत्रों
का आलम यह है कि कोई आपरेशन के दौरान मरीज के पेट में केंची, तौलिया छोड़कर पेट सीं देता है तो कोई फंगसग्रस्त ग्लूकोज की बोतलें चढ़ाकर
मरीज को मरणासन्न स्थिति में ला देता है। किसी अस्पताल में मरीज की मृत्यु हो जाने
के बाद भी आइसीयू में मृत शरीर का दो-दो दिन तक इलाज चलता है तो किसी अस्पताल में गर्भपात
और भ्रूणलिंग परीक्षण की वैधानिक चेतावनी का बोर्ड टँगा होने के बावजूद चेतावनी की
अवैध तरीके से धज्जियाँ उड़ायी जाती हैं।
कार्तिक बदी त्रयोदशी के कृष्णपक्ष में ऐसे लोभी-लालची
आज के धनवन्तरि क्या अपनी देहरी पर ऐसा दीपक रखेंगे जिसकी रौशनी किसी गरीब, असहाय, निराश्रित मरीज तक जा सके? शायद नहीं। यह कार्य तो वही त्यागी, समाजसेवी,
दयावान, मंगल भावना से भरे हुए डॉक्टर करेंगे,
जिन्हें परसेवा से परमानन्द की प्राप्ति होती है।
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सम्पर्क-15/109, ईसानगर, अलीगढ़
मोबा.-
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