ब्लौग सेतु....

15 अप्रैल 2017

गुरु अंगद देव +रमेशराज




गुरु अंगद देव 

+रमेशराज
----------------------------------------------------------------------
सिखों के दूसरे गुरु अंगददेव साहित्य-प्रेमी ही नहीं, ढोंग और आडम्बर के घोर विरोधी थे। अपने जन्म के नाम लहनासिंह के रूप में गुरुजी ने गुरुनानक की इतनी सेवा-सुश्रषा की कि नानकजी ने प्रसन्न होकर आपका नाम गुरु अंगद देव ही नहीं रखा बल्कि सिखों की गुरु गद्दी के योग्य मानकर, कठिन परीक्षा के उपरांत गुरु गद्दी सौंप दी। गुरुनानक के उत्तराधिकारी के रूप में आपने गुरुवाणी के प्रचार के उत्तरदायित्व को ही नहीं संभाला, गुरुवाणी का कई भाषाओं में अनुवाद कराया। गुरु अंगददेव ने सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह किया कि सुल्तानपुर निवासी भाई पेड़े मोखे छत्री से सम्वत 1597 में गुरुवाणी को गुरुमुखी अक्षरों में लिखवाकर गुरुमुखी भाषा की शुरुआत की।
गुरु अंगददेव अलौकिक शक्तियों के धनी थे और अच्छे  भविष्यवक्ता भी। आषाढ़ सम्वत् 1597 में जब सासाराम के शासक से कन्नौज में दिल्ली का मुगल बादशाह हुमायूँ युद्ध में परास्त हो गया तो उसने भागकर गुरु अंगददेव की शरण ली। गुरुजी उस समय खंडूर में रहकर साधनारत थे। हुमायूं गुरुजी  को नमस्कार कर उनके सम्मुख खड़ा हो गया। हुमायूं को खड़े-खड़े दस मिनट हो गये किन्तु गुरुजी को फिर भी समांधिलीन देखकर हुमायूं अपने को अपमानित महसूस कर क्रोध से आग-बबूला हो गया। उसने गुस्से में भरते हुए गुरुजी की हत्या करने के लिये म्यान से तलवार बाहर निकाल ली। तब तक गुरुजी समाधि से जाग चुके थे। जब हुमायूं  गुरुजी पर वार करने को आगे बढ़ा तो गुरुजी ने बिना धैर्य खोये शान्त भाव के साथ हूमायूँ से कहा-‘‘ बादशाह तुमने शेरशाह के समक्ष इस तलवार के वार का प्रयोग क्यों नहीं किया? जो तलवार शेरशाह के सम्मुख खोल से बाहर न आ सकी, उस तलवार का प्रयोग तुम ईश्वर-भक्तों, संतो-फकीरों पर आखिर क्यों करना चाहते हो? फकीर की हत्या कर तुम्हें क्या मिलेगा। फकीर घृणा के नहीं श्रद्धा के पात्र होते हैं।’’
गुरुजी के मधुर और शीतल वचन सुनकर हुमायूं को अपनी भूल का एहसास हो उठा। उसने तलवार फैंक दी और गुरुजी के चरणों पर गिरकर मुआफी मांगने लगा। गुरुजी दया और करुणा के सागर थे, अतः उन्होंने हुमायूं को क्षमादान में क्षणिक भी विलम्ब न किया और कहा-‘‘ बादशाह यदि तुम हमारे ऊपर वार करने के लिये आज तलवार न निकालते तो आज ही तुम्हें मनोवांछित फल मिलता। तुम अपने खोये राज्य के अधिकारी बन जाते। आज चूँकि तुमने अहंकार के वशीभूत होकर गुरुगद्दी का अपमान किया, अतः अब तुम्हें अपने खोये राज्य के लिय बारह साल और संघर्ष एवं तैयारी करनी पड़ेगी। तभी तुम्हें तुम्हारा राज्य वापस मिलेगा।
--------------------------------------------------------------------
+15/109, ईसानगर, निकट-थाना सासनी गेट, अलीगढ़
मो.-९६३४५५१६३० 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

स्वागत है आप का इस ब्लौग पर, ये रचना कैसी लगी? टिप्पणी द्वारा अवगत कराएं...