इन
रावणों को कौन मारेगा?
-रमेशराज
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क्वार
सुदी दशमी को बेहद उल्हास के साथ मनाये जाने वाले उत्सव का नाम ‘दशहरा’ है। इसे ‘विजयादशमी’ के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने अत्याचारी,
कामातुर, भोगविलासी रावण पर चढ़ाई कर उस पर विजय
ही प्राप्त नहीं की, बल्कि उसका वध कर सम्पूर्ण भारतवर्ष को उसकी
काली छाया से मुक्त कराया। भारतीय संस्कृति में रावण अधर्म और बुराई का प्रतीक है।
इस प्रतीक को प्रतीकार्थ में ही हम सब उसके तथा उसके अनीति की राह पर चलने वाले भाई
कुम्भकरण, मेघनाद आदि के पुतले बनाकर उनका सार्वजनिक स्थल पर
दहन कर अपने पावन कर्त्तव्य की इतिश्री करते हैं।
यह त्रेता नहीं, कलियुग है। इस युग में वह पापी भी राम बनकर रावण-कुम्भकरण के पुतले फूँकता
दिखाई देता है, जो स्त्री जाति को पैरों की जूती समझता है। जाने
कितनी ‘दामिनियों’ का शीलभंग करता है। राम
बनने का नाटक करने वालों में ऐसे कितने ही कथित संत हैं, जो बहिन-बेटियों
पर कालाजादू कर अपने सम्मोहन में फँसाते है और अपनी पाप की कुटिया में ले जाकर उनके
साथ कुकर्म करते हैं। रावण के कुकर्म का उसी का भाई विभीषण भागीदार नहीं बनता,
लेकिन राम का वेश धारण किये आज के कथित रामों का पूरा का पूरा कुनबा
इस कुकर्म में साझेदार बनता है।
रावण और उसके कुकर्मी भाइयों-साथियों के पुतलों का दहन
करने वालों में आज वे लोग भी शरीक हैं, जो पटरियों पर लेटे
हुए गरीब वर्ग के लोगों को मदिरा में धुत्त होकर तेज गति से कार चलाते हुए कुचलते हैं।
दबंग और रहीशजादे, अफसरों और नेताओं के ये बेटे राह चलती लड़कियों
पर फब्तियाँ कसते हैं, बलात्कार करते है लेकिन कानून के शिकंजे
से बिल्कुल नहीं डरते हैं।
रावण-दहन के जश्न में अग्निवाण चलाने को आतुर वे माननीय
भी हैं जो सम्वैधानिक सदनों में ब्लूफिल्म देखते हैं, असहाय नारी का शील भंग करते हैं। शहीदों के आयोजनों में देशभक्ति के गीत गाती
लड़कियों के संग नृत्य करते हुए उनके गालों पर हाथ फेरते हैं। अपनी दयनीय आयु के बावजूद
अश्लील हरकतें करते हैं।
रावण को फूँकने वाले वे कानून के रखवाले या कानून बनाने
वाले वे मंत्री और विधायक भी हैं, जो जनता के मिड डे
मील, मनरेगा, और समाज कल्याण की अनेक योजनाओं
में कमीशन डकार कर धनकुबेर बनते हैं। ये न चारे को छोड़ते हैं न कफन, यूरिया, सीमेंट, तोप को। इन सब
के माध्यम से आने वाला कमीशन इनकी तोंद फुलाता है। इन्हें अपार वैभव में डुलाता है।
समाजसेवीजन भले ही इनकी काली करतूतों का पर्दाफाश करें
लेकिन ये कालेधन पर साँप की तरह कुण्डली मारे फुंकारते रहते हैं। कॉमनवेल्थ गेम, टूजी स्पेक्ट्रम, कोयला खदानों, अवैध खनन के माध्यम से अकूत कमाई करने वाले ये रावण, सीता का हरण भी करते हैं
और सुग्रीव नहीं बाली को बल प्रदान करते हैं। ऐसे ही सैकड़ो कलंकों में इनका दामन यहाँ
तक कि मुँह और आत्मा कालिख से पुत गये हों, लेकिन ये राम बनकर, रावण पर अग्निवाण चलाकर ‘रामराज्य’ का सपना जनता के बीच बाँटते हैं।
क्या जनता इन रावणों को पहचानती है। यदि पहचानती है
तो दशहरे पर इन्हीं रावणों के हाथों रावणों और उसके कुटुम्ब का पुतला दहन क्यों कराती है। आज रावण ही रावण के पुतले
का दहन कर रहा है। इस राम बने रावण का पुतला दहन कब होगा?
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