गुरु
तेगबहादुर की शहादत का साक्षी है शीशगंज गुरुद्वारा
+रमेशराज
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मुगल बादशाह औरंगजेब महत्वाकांक्षी, क्रूर और अत्याचारी बादशाह था। दिल्ली के तख्त पर आसीन होने के लिए उसने अपने
पिता शाहजहाँ को तो जेल में डाला ही, अपने तीन सगे भाई भी कत्ल करवा दिये। औरंगजेब किसी धर्म नहीं बल्कि सत्ता के
कुकर्म का जीता-जागता उदाहरण था। निरंकुश शासन करने की महत्वाकांक्षा के चलते उसने
हिन्दू-शासकों को लालच देकर या जबरन उनके राज्य अधिकार छीन लिए। हिन्दुओं पर नया टैक्स
‘जजिया’ थोप दिया। यहाँ तक कि मेलों, तीर्थ-स्थानों एवं धार्मिक हिन्दू रीति-रिवाजों को शाही फरमान जारी कर बन्द
करा दिया। जब बडे-बडे संतों-भक्तों-फकीरों ने उसकी इस कट्टरता को स्वीकार नहीं
किया तो उन्हें भी मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया।
इतिहास बताता है कि इस सनकी बादशाह के
हुक्म का पालन करते हुए जब जनरल अफगान खाँ ने कश्मीरी पंडितों पर इस्लाम कुबूल
करने के लिए दबाब डाला तो कश्मीरी पंडित अत्यंत भयभीत होकर गुरु तेगबहादुर की शरण
में गये और रक्षा की गुहार लगाई। गुरुजी ने कहा कि हम सब मिलकर बादशाह के अभियान का
विरोध करेंगे, भले ही हमें अपने प्राण ही क्यों
न देने पड़ें।
औरंगजेब को गुरुजी के इरादों की जब भनक
लगी तो उसने गुरु तेगबहादुर को दिल्ली बुलवाया और उनसे इस्लाम कबूल करने को कहा।
गुरुजी ने जब यह सब करने से साफ इनकार कर दिया तो क्रूर बादशाह ने क्रोधित होकर
उन्हें कारा में डलवा दिया। उनके शिष्यों और हिन्दुओं का आंतकित करने की गरज से
मतिराम नामक सिख को आरे से चिरवाया और दिआले नामक सिख को उबलती देग में फैंक दिया
गया। इस नीच कर्म के बाद औरंगजेब ने गुरुजी से कहा -‘यदि आप मुसलमान नहीं बनोगे तो आपका भी यही हश्र होगा।’ शेष रहे तीनों सिखों को गुरुजी ने आदेश दिया कि मेरा अंतिम समय आ गया है, तुम पंजाब लौट जाओ। उनके शिष्य गुरुदत्ता अदे और चीमा ने कहा -‘गुरुजी हमारे तो बेडियाँ पड़ी हैं, हम कैसे जा सकते हैं।’ गुरुजी बोले- गुरुवाणी
का पाठ करो, बेडियाँ अपने आप टूट जायेंगी।
दरवाजे अपने आप खुल जायेंगे। तीनों शिष्यों ने जब गुरुवाणी का जाप किया तो गुरु
आशीर्वाद से दरवाजे खुल गये और बेडियाँ टूटकर जमीन पर गिर पडीं। तीनों स्वतंत्र
होकर वहाँ से भाग गये। अकेले रह गये गुरुजी जाप करने लगे -
राम
नाम उरि मैं गहिऔ जाके सम नहिं कोइ
जिह
सिमरत संकट मिटै दरस तुहारौ होई।
11 नवम्बर 1675 का मनहूस दिन। क्रूर बादशाह औरंगजेब जेल में आया। उसने गुरुजी को जेल से बाहर
निकाला और दिल्ली के चाँदनी चौक स्थान पर ले आया। भारी हजूम के बीच इसी चौक पर
उनका सरेआम कत्ल कर दिया गया। इस दर्दनाक घटना के गवाह वहाँ जितने भी लोग खड़े थे, सबकी आँखों से अश्रु की अविरल धारा फूट पड़ी। प्रकृति ने भी तेज तूफान के रूप में
प्रकट होकर अपना रोश जताया। जब अंधेरा हो गया तो जीवन सिंह नामक सिख ने गुरुजी का
कटा हुआ शीश कपड़े में लपेटा और उसे आनंदपुर ले आया और चन्दन की लकड़ी की चिता के
हवाले सम्मानपूर्वक कर दिया।
दिल्ली में जहाँ गुरुजी का कत्ल हुआ आज
वहाँ एक गुरुद्वारा ‘शीशगंज’ के नाम से है। यह गुरुद्वारा गुरुजी की शहादत का
साक्षी है। जिस पर सिख अत्यंत श्रद्धा के साथ माथा टेकते हैं और अरदास करते हैं।
गुरुजी के धड़ को जिस स्थान पर अग्नि को
समर्पित किया गया, उस स्थान पर दिल्ली
में गुरुद्वारा ‘रकाबगंज’ के नाम से है। यह गुरुद्वारा भी उतनी ही श्रद्धा और पूजा
का स्थल है जितना कि शीशगंज गुरुद्वारा।
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सम्पर्क
– 15/109,
ईसानगर, अलीगढ़
मो. 09634551630
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