उत्सव
पतंग
मेरे लिए उर्ध्वगति का उत्सव
मेरा सूर्य की ओर प्रयाण।
पतंग
मेरे जन्म-जन्मांतर का वैभव,
मेरी डोर मेरे हाथ में
पदचिह्न पृथ्वी पर,
आकाश में विहंगम दृश्य।
मेरी पतंग
अनेक पतंगों के बीच...
मेरी पतंग उलझती नहीं,
वृक्षों की डालियों में फंसती नहीं।
पतंग
मानो मेरा गायत्री मंत्र।
धनवान हो या रंक,
सभी को कटी पतंग एकत्र करने में आनंद आता है,
बहुत ही अनोखा आनंद।
कटी पतंग के पास
आकाश का अनुभव है,
हवा की गति और दिशा का ज्ञान है।
स्वयं एक बार ऊंचाई तक गई है,
वहां कुछ क्षण रुकी है।
पतंग
मेरा सूर्य की ओर प्रयाण,
पतंग का जीवन उसकी डोर में है।
पतंग का आराध्य(शिव) व्योम(आकाश) में,
पतंग की डोर मेरे हाथ में,
मेरी डोर शिव जी के हाथ में।
जीवन रूपी पतंग के लिए(हवा के लिए)
शिव जी हिमालय में बैठे हैं।
पतंग के सपने(जीवन के सपने)
मानव से ऊंचे।
पतंग उड़ती है,
शिव जी के आसपास,
मनुष्य जीवन में बैठा-बैठा,
उसकी डोर को सुलझाने में लगा रहता है।
First Published: Tuesday, January 14, 2014 - 20:13
वाह..
जवाब देंहटाएंकविता भी लिखते हैं
अच्छी कविता..
पसंद आई...
वाह बहुत सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंमोदी जी राजनीति के पुरोद्धा होने के साथ ही लेखक भी है यह जानकार अच्छा लगा ..
सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 15 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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