ब्लौग सेतु....

9 जनवरी 2016

इक ही हक़ीक़त बनी रहे . .पम्मी सिंह












नव वर्ष की
नवोत्थित शफ़क़
यूँ ही बनी रहे . .
हमारे एवानो में
आसाइशे से नज़दीकियों की
सफ़र बहुत छोटी हो
साथ ही उन दहकानों की दरें
भी जगमगाती  रहे . .
ख्वाबों में भी
इन अज़ीयते से
दूरियाँ बहुत लम्बी हो
इन्सानियत फ़ना होने से
बचती  रहे. .
अहद ये करें कि
फ़साने कम  हो
इक ही हक़ीक़त बनी रहे . .
ये शफ़क़ घरो में
खिलती रहे..







-पम्मी सिंह
:: शब्दार्थ ::
शफ़क़ -क्षितिज  की लाली (dawn), नवोत्थित -नया उठा हुआ (new rising day)
एवानो - महल (palace.home), आसाइशों -सुख  समृधि (well being). दहकानों -किसान (farmer)
अज़ीयते - दुख  दर्द (unhappy,sad), अहद -प्रतिज्ञा (oath)

मूल रचना

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-01-2016) को "विवेकानन्द का चिंतन" (चर्चा अंक-2217) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    नववर्ष 2016 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सूचना हेतु आभार,सर.
    धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं

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