कहाँ गयी तू ऐ दिल्ली की सर्दी |
| इस बार तूने देर से आने की हद कर दी |
| वो सर्द दिन, वो ठिठुरन भरी रातें |
| नहीं दिख रहा कोई हाथ रगड़ते और कंपकपाते |
| धुंध भरी सुबह का आलम भी कहीं खो गया |
| मेरी दिल्ली की सर्दी को इस बार ये क्या हो गया |
| क्या इस बार गर्म कपडे यूं ही रखे रह जाएंगे |
| और जनवरी में क्या, अप्रैल का मज़ा उठाएंगे |
| तेरा इंतज़ार तो हम पूरा साल करते हैं |
| तू नाराज़ मत होना, हम तो सिर्फ गर्मी से डरते हैं |
| कोहरे की चादर से, ढक दो, दिल्ली के दामन को |
| कब से हम प्रतीक्षारत हैं तेरे आगमन को |
| तुझ संग मिलन का साल में कुछ ही समय मिलता है |
| नहीं तो पूरा साल ,ये बदन गर्मी में ही जलता है |
| न इस बार तू आई और न तेरी सहेली वर्षारानी |
| अब भी आ जाओ, मत करो यूं मनमानी |
| तू है प्रसिद्ध बड़ी, तेरे गीत गाते सारे देशवासी |
| अपनी ठंडी हवाओं से दूर करो हमारी उदासी |
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8 जनवरी 2016
दिल्ली की सर्दी ...........हितेश कुमार शर्मा
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इस बार नज़र लग गयी ..
जवाब देंहटाएंहर जगह का यही हाल है । सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंहर जगह का यही हाल है । सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद
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