ब्लॉग लिखे जाते हैं..
तात्कालिक घटना के आधार पर
मत- तोहमत यथायोग्य दी जाती है
व लगाई भी जाती है
फिर..सब मिट जाता है जेहन से....
पर हम ये भूल जाते हैं कि
हम कवि व साहित्यकार हैं
शिक्षक हैं..कथाकार हैं
मीडिया नहीं न हैं
हम समझदार गुणवान हैं..
हमारा लिखा पाठ्य-पुस्तकों का
हिस्सा बनता है
हम लिखते हैं
तात्कालिक घटनाओं पर...
और अकल मिलती है
मीडिया वालों को
उसी को बार-बार प्रसारित कर
आम जनता को..
भ्रमित करते रहते हैं वे.
...
यशोदा दीदी की कलम से...
तात्कालिक घटना के आधार पर
मत- तोहमत यथायोग्य दी जाती है
व लगाई भी जाती है
फिर..सब मिट जाता है जेहन से....
पर हम ये भूल जाते हैं कि
हम कवि व साहित्यकार हैं
शिक्षक हैं..कथाकार हैं
मीडिया नहीं न हैं
हम समझदार गुणवान हैं..
हमारा लिखा पाठ्य-पुस्तकों का
हिस्सा बनता है
हम लिखते हैं
तात्कालिक घटनाओं पर...
और अकल मिलती है
मीडिया वालों को
उसी को बार-बार प्रसारित कर
आम जनता को..
भ्रमित करते रहते हैं वे.
...
यशोदा दीदी की कलम से...
आभार
जवाब देंहटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (09-01-2016) को "जब तलक है दम, कलम चलती रहेगी" (चर्चा अंक-2216) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सटीक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसटीक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं