कवि रमेशराज
के पिता स्व. श्री ‘लोक
कवि रामचरन गुप्त’ के चर्चित
‘देशभक्ति के गीत’
खून से खेलें होली
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भारतवासी भारत मां हित तन-मन
दें बलिदान
कभी न हिम्मत हारें रण में दुश्मन को ऐलान
चलायें डट कर गोली, खून
से खेलें होली।
पीछे कदम न होगा जब तक सांस हमारी
दे दें जान वतन की खातिर भारत भू है प्यारी
अपना नारा हिन्द हमारा सुनें सभी श्रीमान
चलायें डटकर गोली, खून
से खेलें होली।
एक-एक
कतरा खूं का है बारूदी गोला
अरि के निशां मिटा देंगे हम पहन बसंती चोला
अति बलशाली वीरमयी है अपना हिन्दुस्तान
चलायें डटकर गोली, खून
से खेलें होली।
लहर-लहर
लहराये अपना विजयी विश्व तिरंगा
भारत मां की जय हम बोलें,
बोलें हर-हर
गंगा
बढ़-बढ़कर
हम लड़ें लड़ाई, हम हैं वीर
जवान
चलायें डटकर गोली, खून
से खेलें होली।
सर से बांधे हुए कफन हम देते हैं कुर्बानी
कल इतिहास लिखेगा अपनी यारो अमर कहानी
वन्देमातरम् रामचरन कहि अपना देश महान
चलायें डटकर गोली, खून
से खेलें होली।
+लोककवि रामचरन गुप्त
लाज जाकी हम राखें
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रे हमकूं प्राणन ते प्यारौ है हिन्दुस्तान लाज जाकी
हम राखें।।
आजादी का रंग-तिरंगा
लहर-लहर लहरावै है
वीर सुभाष चन्द्रशेखर की कुर्बानी कूं गावै है
ए रे सूर कबीरा के जा में हैं मीठे गान, लाज
जाकी हम राखें।
रामचरन रचि रहयौ रात-दिन
रे गर्वील गाथाएं
विजय विहीन दीन होने से बेहतर हैं हम मर जाएं
ए रे हमकूं बननौ है भारत के वीर जवान,
लाज जाकी हम राखें।
+लोककवि रामचरन गुप्त
विदेशी लूटें भारत कूं
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जागौ-जागौ
रे भारत की वीर जवान, विदेशी लूटें
भारत कूं।
पापी पाकिस्तान लिये नापाक इरादे घूमि रह्यौ
काश्मीर को राग अलापै,
अहंकार में झूमि रह्यौ
ऐ रे काटौ-काटौ
रे कुकर्मी के अब कान, विदेशी लूटें
भारत कूं।
राणा के भाले, चौहानी
तीर कमानें ले आयौ
धरि कें धीर
वीर तुम अरि कूं अपने जौहर दिखलायौ
ऐ रे लायौ मुश्किल से आजादी हिन्दुस्तान,
विदेशी लूटें भारत कूं।
ऐसे तैसे देश बचायौ हमने भइया गोरन ते
अब रक्षा करनी है सबकूं अपने घर के चोरन ते
ऐ रे इन जयचंदों से बचि कें रहियौ चौहान,
विदेशी लूटें भारत कूं।
+लोककवि रामचरन गुप्त
जय-जय
वीर जवान
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अरे तेरी बढ़ती जाये शान,
कदम चुन-चुन
रखना।
लहर-लहर
लहराये झंडा, ये हम सबका
का प्यारा हो
वीर सुभाष कहें एक बानी इंकलाब का नारा हो
इज्जत की खातिर शेखर भी हो बैठे कुर्बान,
कदम चुन-चुन
रखना।
खूब तिरंगा रंग देश में चहल-पहल
दिखलाता है
अंग्रेजी सेना का डायर मन अपने घबराता है
ऊधम सिंह ने आडायर
की पल में ले ली जान, कदम चुन-चुन
रखना।।
भगतसिंह फांसी के फंदे पर अपना दम तोड़ा था
गुरु ने लाल चिने हंस-हंसकर
क्या ये साहस थोड़ा था
रामचरन अब लड़ौ लड़ाई करि के पूरा ध्यान,
कदम चुन-चुन
रखना।।
+लोककवि रामचरन गुप्त
इतना पहचान लो चीन वालो
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सर कटाये, न
सर ये झुकाये
पीठ दिखला के भागे नहीं हम।
खून की होलियां हमने खेली
युद्ध में आके भागे नहीं हम।
इतना पहचान लो चीन वालो
दृष्टि हम पर बुरी अब न डालो
हम बारुद अंगार भी है
प्यार के सिर्फ धागे
नहीं हम।
हम शेरों के दांतों की गिनती
खोल मुंह उनका करते रहे हैं
कोई कायर कहे या कि बुजदिल
जग में इतने अभागे नहीं हम।
एक ही गुण की पहचान वाला
कोई समझे न रामचरन को
आग पर घी रहेंगे परख लो
स्वर्ण पर ही सुहागे नहीं हम।
+लोककवि रामचरन गुप्त
मिलायें तोय माटी में
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एरे दुश्मन भारत पै मति ऐसे हल्ला बोल,
मिलायें तोय माटी में।
माना पंचशीलता के हम पोषक-प्रेमपुजारी
हैं
और शांति के अग्रदूत हम सहनशील अति भारी हैं
पर रै दुश्मन हाथी सौ मद कौ मारौ मत डोल,
मिलायें तोय माटी में।
हम भारत के वीर तीर तकि-तकि
के तो पै छोडि़ंगे
तोकूं चुनि-चुनि
मारें तेरे अहंकार कूं तोडि़गे
एरे मुंह बन्दूकन के सीमा पै यूं मत खोल,
मिलायें तोय माटी में।
पग-पग
पापी पाक कूं नीचौ रामचरन दिखलावैगी
जाकूँ चीरें फाड़ें जो ये सोते
शेर जगावैगी
एरे हमरे साहस कूं कम करिकें मत रे तोल,
मिलायें तोय माटी में।
+लोककवि रामचरन गुप्त
चुनरिया मेरी अलबेली
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एरे रंगि दे रंगि दे वीरन रंगरेज,
चुनरिया मेरी अलबेली।
पहलौ रंग डाल
देना तू विरन मेरे आजादी कौ
और दूसरी होय चहचहौ इन्कलाब की आंधी कौ
ऐरे घेरा डाले हों झांसी पै अंगरेज,
चुनरिया मेरी अलबेली।
एरे रंगि दे रंगि दे वीरन रंगरेज,
चुनरिया मेरी अलबेली।|
‘भारत
गोरो फौरन छोड़ो’ ये जनता का
नारा हो
आजादी है जन्मसिद्ध अधिकार
‘तिलक’
ललकारा हो
ऐरे ‘लाला’
लाटी तै पड़े हों निस्तेज,
चुनरिया मेरी अलबेली।
एरे रंगि दे रंगि दे वीरन रंगरेज,
चुनरिया मेरी अलबेली।।|
जगह-जगह
तू चर्चे करना क्रान्तिवीर गाथाओं के
मुखड़े और अंतरे लिखना बिस्मिल की रचनाओं के
एरे अशफाकउल्ला की कविता का भरना तेज,चुनरिया
मेरी अलबेली
एरे रंगि दे रंगि दे वीरन रंगरेज,
चुनरिया मेरी अलबेली।।
‘वीर
सुभाष’ बने सेनानायक अरिदल से लड़ते
हों
‘सूर्यसेन’
अपनी सेना ले संग फतह को बढ़ते हों
एरे ले आ चुनरी
में वीरन ‘चटगांव विलेज’,चुनरिया
मेरी अलबेली
एरे रंगि दे रंगि दे वीरन रंगरेज,
चुनरिया मेरी अलबेली।।
भगतसिंह, सुखदेव,
राजगुरु सांडर्स के घेरे हों
और चन्द्रशेखर मुंडेर पर निगरानी को बैठे हों
एरे दर्शा वीरन रे तू ‘लाहौरी
कालेज’, चुनरिया मेरी अलबेली।
एरे रंगि दे रंगि दे वीरन रंगरेज,
चुनरिया मेरी अलबेली।।
फायर-फायर
पड़े सुनायी वो ‘जलियां का
बाग’ बना
भारत की जनता को डसता वीरन ‘डायर
नाग’ बना
एरे बदला लेने तू फिर ऊधमसिंह
कूं भेज, चुनरिया मेरी अलबेली।
एरे रंगि दे रंगि दे वीरन रंगरेज,
चुनरिया मेरी अलबेली।।
कितनी हिम्मत कितना साहस रखता हिंदुस्तान दिखा
फांसी चढ़ते भगतसिंह के अधरों पर मुस्कान दिखा
एरे रामचरन कवि की रचि वतन परस्त इमेज,
चुनरिया मेरी अलबेली।
एरे रंगि दे रंगि दे वीरन रंगरेज,
चुनरिया मेरी अलबेली।।
+लोककवि रामचरन गुप्त
छलिया के डाली जाय नकेल
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एरे आयी-आयी
है जिय नये दौर की रेल, मुसाफिर जामें
बैठि चलौ।
जा में डिब्बे लगे भये हैं भारत की आजादी के
भगतसिंह की कछू क्रान्ति के कछू बापू की खादी के
एरे जाकी पटरी हैं ज्यों नेहरू और पटेल,
मुसाफिर जामें बैठि चलौ।।
जा की सीटी लगती जैसे इन्कलाब के नारे हों
जा की छुक-छुक
जैसे धड़के फिर से हृदय हमारे हों
एरे जा के ऊपर तू सब श्रद्धा-सुमन
उड़ेल, मुसाफिर जामें बैठि चलौ।।
जाकौ गार्ड वही बनि पावै जाने कोड़े खाये हों
ऐसौ क्रातिवीर हो जाते सब गोरे थर्राये हों
एरे जाने काटी हो अंगरेजन की हर जेल,
मुसाफिर जामें बैठि चलौ।।
जामें खेल न खेलै कोई भइया रिश्वतखोरी के
बिना टिकट के, लूट-अपहरण
या ठगई के-चोरी के
एरे रामचरन! छलिया
के डाली जाय नकेल, मुसाफिर जामें
बैठि चलौ ||
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+लोककवि रामचरन गुप्त
दिनांक 03/01/2017 को...
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद... https://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस प्रस्तुति में....
सादर आमंत्रित हैं...
नव वर्ष की मंगलकामनाएं
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
बहुत ही सुन्दर रचना । साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना । साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
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