डरपावै मति जंजीरन से
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दुश्मन तेरे रक्त से हमें मिटानी प्यास
अब भी हैं कितने यहां सुन सुखदेव सुभाष।
सबके नयन सितारे
भगत सिंह से राजदुलारे
भारत में जब तक हैं प्यारे
अरि कूं छरि दइयें।
भरी भूमि वीरन से
डरपावै मति जंजीरन से
तेरी छाती को तीरन से
छलनी करि दइयें।
अगर युद्ध की
ठानी
कहते रामचरन ऐलानी
दाल जैसौ तोकूं अभिमानी
पल में दरि दइयें।
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‘लोक कवि रामचरन गुप्त’
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