करै न इज्जत कोय
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मैं सखि निर्धन का भयी करे न इज्जत कोय
बुरी नजर से देखतौ हर कोई अब मोय।
|| ‘लोक कवि रामचरन
गुप्त’ ||
कैसौ देश निगोरा
तकै मेरी अंगिया कौ डोरा
मोते कहत तनक से छोरा
चल री कुंजन में।
हम का जानें होरी
पास गुलाल अबीर न रोरी
आयी निकट न खुशी निगोरी
अपने जीवन में।
दुख की लाद गठरिया
अब तो दुल्लर भयी कमरिया
रामचरन चुकि गयी उमरिया
बस संघर्षन में।
|| ‘लोक कवि रामचरन
गुप्त’ ||
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