जिकड़ी भजन
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जिला अलीगढ़
के बेरनी गांव के फूलडोल [ग्रामीण कवि
सम्मेलन] के लिए लोककवि रामचरन गुप्त
द्वारा लाई करते हुए [खेत काटते
हुए] रचा गया एक ऐसा जिकड़ी भजन
जो फूलडोल में आयी 36 मंडलियों
के 36 कवियों के मध्य गाया गया और
अकाट्य भी रहा। इसी भजन पर प्रथम पुरस्कार भी मिला। दुर्भाग्यवश यही कवि की अन्तिम
कविता भी बनकर रह गयी
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दीनन पति दीन दयाला
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मेरी तरनी कूं तारौ तारनहार ऐ फंसि गयी भव सागर भंवर
में।।
मोहन मदन मुकुन्द महेश्वर मोक्ष मुरारी
आदि अजित असुरारि अनामय अनघ अघारी
अजर अमर अखिलेश
सत्य सच्चिदानंद स्वयंभू शिवशंकर शेष सुरेश
व्यापक विष्णु विशुद्ध विश्वम्भर वरुण विधाता
नारायण नव नित्य निरंजन नट निर्माता
ए दीनन पति दीन दयाला
। निरखत नीर नयन नरसी के।
भूषण भरि भंडार ‘भक्त-भय
भंजन’ भरने भात चले
सुरपति सारथ साज-साज
सजि सब सुरपुर से साथ चले
सो गावत ग्रहिणी गीत गांव की ‘गहि
ग्रह कूं गज पाला’
ए दीनन पति दीन दयाला
।। पंडित परम पुनीत प्रेम के ।।
दुर्बल दशा दीनता देखी दुखित द्वारिकाधीश भये
दारुण दुःख दुःसहता दुर्दिन दलन दयालू द्रवित भये
सो सत्य सनेही संग सुदामा के श्री श्याम सुपाला
ए दीनन पति दीन दयाला
।। पांचाली पट पकरि प्रसारौ ।।
दुष्ट दुःशासन द्रुयोधन दुख द्रोपद को दीने भारे
महारथी महाभारत में भरवाय महीप मही डारे
सो पंथ प्रदर्शक प्रिय पारथ के पंड-पुत्र
प्रण पाला
ए दीनन पति दीन दयाला।
श्रोता समझ लो पूछ लो गहि ग्रन्थ कर में लीजिए
परिभाष कर मम भजन कौ उत्तर सही दे दीजिए
बतलाइये कितने हैं श्रेणी गुणा करो श्रीमान
आकर सभापति के निकट दर्शाइये गुणवान
है कितने भाव गिनाओ, मम
प्रश्न तनिक सुलझाओ
कवि रामचरन हर्षाते, गुरु-चरनन
शीश नबाते
मंडल ने वाद्य बजाया,
डोरी शर्मा ने गाया।
सो करियो कृपा कृपानिधि कान्हा कमलाकंत कृपाला
ए दीनन पति दीन दयाला।
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