उर करुणा नहिं काऊ
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लक्ष्य तुम्हारे सामने लेउ धनुष
कूँ तान।
युद्ध भूमि में युद्ध ही लड़ना नेक विधान।
धीर तुम धारौ
निज मन।
क्या दुःशासन क्या दुर्योधन
मानवता-ममता
के दुश्मन
अर्जुन सारे हैं।
उर करुणा नहिं काऊ
को फिर का कौ चाचा-ताऊ
ये रिश्ते घरबार बिकाऊ
अर्जुन सारे हैं।
रामचरन की मानौ
जल्दी धनुष
वाण कूं तानौ
अर्जुन खड़े युद्ध में जानो
शत्रु तुम्हारे हैं।
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+लोककवि रामचरन गुप्त
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