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2 जनवरी 2017

लोककवि रामचरन गुप्त का एक चर्चित रसिया





चक्रव्यूह दरम्यान
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बंसी बारे मोहना नंदनदन गोपाल
मधुसूदन माधव सुनौ विनती मम नंदलाल।
आकर कृष्ण मुरारी,
नैया करि देउ पार हमारी
मीरा-गणिका तुमने तारी,
कीर पड़ावत में।
चक्रव्यूह दरम्यान,
राखे कौरवदल के मान
अर्जुन कौ हरि लीनौ ज्ञान
तीर चढ़ावत में।
वस्त्र-पहाड़ लगायौ,
कौरवदल कछु समझि न पायौ
हारी भुजा अंत नहिं आयौ
चीर बढ़ावत में।
भारई की सुन टेर,
गज-घंटा झट दीनौ गेर
रामचरन प्रभु करी न देर,
वीर अड़ावत में।
[कवि रमेशराज के पिता स्व. श्री लोक कवि रामचरन गुप्तका एक चर्चित लोकगीत’ ]
+कवि रमेशराज के पिता स्व. श्री लोक कवि रामचरन गुप्तका एक चर्चित लोकगीत
।। प्रभु के गुन गाऔ।।

भूखौ प्रभु कौ शेर है देउ पुत्र कूं फार
रानी सत के मत डिगौ तनिक न करौ अबार।

मति मन में घबराऔ,
रानी आंसू नहीं बहाऔ
मोरध्वज की बात बनाऔ
आरौ ले आयौ।

दर पै मुनिवर ज्ञानी
भूखी शेर बहुत है रानी
हमकूं कुल की आनि निभानी
आन तुम चित लाऔ।

रीत सदा चलि आयी
जायें प्राण, वचन नहीं जायी
करवाओ मति जगत हंसाई
सुत कूं चिरवाऔ।

तुरत चलायौ आरौ
खूं कौ फूटि परौ फब्बारौ
मोरध्वज तब वचन उचारौ
भोजन प्रभु पाऔ।

मनमोहन मुस्काये
मृत सुत तन में प्राण बसाये
रामचरन कवि अति हरषाये
प्रभु के गुन गाऔ।


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