जलतरंग बजता,
जब चुंबन करता प्याले को प्याला,
वीणा झंकृत होती,
चलती जब रूनझुन साकीबाला,
डाँट डपट
मधुविक्रेता की ध्वनित पखावज करती है,
मधुरव से मधु की
मादकता और बढ़ाती मधुशाला।।११।
मेहंदी रंजित
मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,
अंगूरी अवगुंठन
डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,
पाग बैंजनी,
जामा नीला डाट डटे पीनेवाले,
इन्द्रधनुष से
होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला।।१२।
हाथों में आने से
पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
अधरों पर आने से
पहले अदा दिखाएगी हाला,
बहुतेरे इनकार
करेगा साकी आने से पहले,
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।।१३।
लाल सुरा की धार
लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
फेनिल मदिरा है,
मत इसको कह देना उर का छाला,
दर्द नशा है इस
मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
पीड़ा में आनंद
जिसे हो, आए मेरी मधुशाला।।१४।
जगती की शीतल
हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,
जगती के ठंडे
प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,
ज्वाल सुरा जलते
प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
जलने से भयभीत न
जो हो, आए मेरी मधुशाला।।१५।