नदी का दर्द
कल-कल करती करवटें बदलती बहती सरिता
का आदर्श रूप
हो गयी अब गए दिनों की बात ,
स्वच्छ जलधारा का मनभावन संगीत
हो गयी अब इतिहास की बात।
शहरीकरण की आँधी में
गन्दगी को खपाने का
एकमात्र उपाय / साधन
एक बे-बस नदी ही तो है ,
पर्यावरण पर आँसू बहाने के लिए
सदाबहार मुद्दा हमारे द्वारा उत्पादित गन्दगी ही तो है।
खुले में पड़ा मल हो
या
सीवर लाइन में बहती हमारी गन्दगी,
समाज की झाड़न हो
या
बदबूदार नालों में बहती बजबजाती गंदगी
सब पहुँचते हैं एक निर्मल नदी की पवित्रता भंग करने
जल को विषाक्त / प्रदूषित बनाने।
नदी के किनारों पर
समाज का अतिक्रमण,
है कुंठित मानवीय चेष्टाओं का प्रकटीकरण।
प्रपंच के जाल में उलझा मनुष्य
नदी के नाला बनने की प्रक्रिया को
देख रहा है लाचारी से ,
नदियों के सतत सिमटने का दृश्य
फैलता जा रहा है पूरी तैयारी से।
नदी के किनारे बैठकर
कविता रचने की उत्कंठा
जर्जर पंख फड़फड़ाकर दम तोड़ रही है ,
बहाव में छिपी ऊर्जा के लिए
नदी की धारा भौतिकता मोड़ रही है।
नदी से अब पवित्र विचारों का झौंका नहीं
नाक सिकोड़ने को विवश करता
सड़ांध का गुबार उठता है ,
हूक उठती है ह्रदय में
नदी के बिलखने का
स्वर उभरता है।
नदी अपने उदगम पर पवित्र है
लेकिन......
आगे का मार्ग
गरिमा को ज़ार-ज़ार करता है ,
बिन बुलाये मिलने आ रहा
गन्दगी का अम्बार
गौरव को तार-तार करता है।
नदी चीखती है
कराहती है
कहती है -
ज़हरीले रसायन ,मल ,मूत्र ,मांस ,मलबा ......प्लास्टिक और राख
क्यों मिलाये जा रहे हैं मुझमें......?
मासूम बचपन जब मचलता है
नदी में नहाने को
देख समझकर मेरा हाल
कहता है मुझे गंदा नाला
और रोक लेता है अपनी चंचलता का विस्तार
कोई बताएगा मुझे ......
आप , तुम में से
किसी मासूम को न समझा पाने में
मेरा दोष क्या है ???
@रवीन्द्र सिंह यादव
नदी का सच्चा दर्द बहुत सुंदर लिखा है आपने,मन को झकझोरती विचारणीय रचना आपकी रवींद्र जी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार श्वेता जी रचना को सराहने और मनोबल दृढ़ करती टिप्पणी के लिए।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंNADI KA DARD USKI GAHRAAI KI TARAH GAHRA HAI. VAAH...
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार .
हटाएंनदी पर लिखा गया वास्तविक सत्य कितना कड़वा है. कविता में लोग सुन्दरता की तलाश करते हैं लेकिन यहाँ कवि समय का वीभत्स चित्र पेश करता है.
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
हटाएंबहुत गहरा है आज नदी का दर्द.
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
हटाएंवाह..वाह..
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
हटाएंनदी के दर्द को बाखूबी शब्द दिए हैं ...
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार दिगंबर जी अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए।
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