झड़ी जब लग रही हो आँसुओं की
कमी महसूस क्या हो बदलियों की
हवेली थी यहीं कुछ साल पहले
जुड़ी छत कह रही है इन घरों की
वो मुझ पर मेहरबां है आज क्यों
महक-सी आ रही है साज़िशों की
मुझे पहले मुहब्बत हो चुकी है
मुझे आदत है ऐसे हादसों की
अदालत आ गए इंसाफ़ लेने
मती मारी गयी थी मुफ़लिसों की
चले हैं जंग लड़ने दोपहर में
ज़रा हिम्मत तो देखो जुगनुओं की
हमारा वक़्त भी अब आता होगा
'नकुल' बस देर है अच्छे दिनों की
-नकुल गौतम
सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब!!!
जवाब देंहटाएंNice though
जवाब देंहटाएंNice though
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